Tuesday, 4 November 2014

उन पूछी है कुसल हमारी ....

उन पूछी है कुसल हमारी, तुम ही कहो अब सखी सयानी I
मैं का लिखूं बेचारी
उन पूछी है ....

मैं का जानूं दुःख बिरहा का, मैं हूँ भोली नारी  I
खावत पीवत, खेलत कूदत, सोवत टांग पसारी I
उन पूछी है ....

ऋतू बसंत कलियाँ मुस्कानी, छाई अजब बहारी I
झूरी झूरी अम्बवा की डारि, कूके कोयल कारी I
उन पूछी है ....

फागुन रुत आई रंग रंगीली, बौर भाई सखी सारी I
अपने (सबही) पिया संग खुल खुल खेलें, मैं देखूं मन मारी ....
उन पूछी है ....

तड़पत तड़पत कहूँ सावन आया, छाई घटा मतवारी I
बैरी पपीहा धीर न धरे, पीयू पीयू करात पुकारी I
उन पूछी है ....

भादों उमड़ घुमड़ कर बरसे, चमके बिजुरी कारी I
धीरज बांध टूट गए सारे, नीर बहे अतिभारी I
उन पूछी है ....

आप न आये बुलाये न भेजा, जो बन जात पुकारी I
स्वामीदास पिया बड़े हठीले, अरे किन संग लागी यारी I
उन पूछी है ....

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