Tuesday, 4 November 2014

ज़िहाले मिस्की ........
किताबे हिज़्राँ .........
कोई काफिर ही शब को सोता है, रात भर दिल में दर्द होता है I
ठंडी ठंडी हवा जो चलती है, आग सी पहलुओं में जलती है I
एक मुद्दत हुई नहीं देखा, हाय तेरा वो चाँद सा मुखड़ा I
दिल तड़पता है आँख रोती है, इस तरह सुबह शाम होती है I
खाये जाता है कोई सीने में, आग लग जाये ऐसे जीने में I
तेरा है साँस आने जाने से, अब तो आज किसी बहाने से I
ज़िहाले मिस्की .......
किताबे हिज़्राँ ......
कुछ मुझे तेरे दर से मिल जाए, किस मुनाफिक को इसकी हसरत है I
क्या करूंगा मैं नेमते लेकर, मेरी हर साँस तेरी नेमत है I
तुझ पे रोशन है ऐ मेरे मौला, कि मेरे दिल में सोहज़े वहदत है I
तेरे इनाम की नहीं ख्वाइश, बल्कि मुझको तेरी जरूरत है I
ज़िहाले मिस्की ....
किताबे हिज़्रा ....
ऐ खुशनुमा सितारों, शम्मा जलाने वालों,
गरदु पे सादगी से, ए जगमगाने वालों I
सदके मैं इस जिया के, इक बात मेरी मानो,
जब गुलशन मैं झोंके, चलने लगे हवा के,
कुछ नूर कुछ सियाही, जिस वक्त मिल रहे हों I
फिर दौस की हवा से, फिर फूल खिल रहे हो I
जैसे ही आज तुममें, हुस्ने अजल समाए I
मशरफ में सुबह सादिक, जिस वक्त जगमगाए I
कहना कि एक बन्दा, मुद्दत से रो रहा है I
रो रो के बेकसी में, जान अपनी खो रहा है I
रोने का चश्मे तरसे, गोया मुहाएदा है I
माबूद ये हमारा, ऐनी मुशाहेदा है I
हम कांपते हैं शब भर, कुछ यूं कराहता है I
और सिर्फ तुमसे इतना, इक दोस्त चाहता है I
जिहाले मिस्की .....
किताबें हिज़्रा .......




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