सीने में दर्द लेके चले गुलिस्तां से हम,
आई बहार दूर हुए आशियाँ से हम I
होगा न इस जहाँ में कोई हम सा बदनसीब,
मंजिल के पास आके छूटे कारवां से हम I
हम से खुद अपना साया ही बेज़ार हो गया,
शिकवा करें तो क्या करें उस मेहरबान से हम I
इस गर्दिशे-दौरां की ये गर्दिश तो देखिए,
फिर आ गए वहीँ पे, चले थे जहाँ से हम I
कहना न फिर कि तालिबे-रेहमत न था कोई,
जाते हैं उठ के आज तेरे आस्तां से हम I
थी आरजू कि हम भी समझते कुछ उनकी बात,
वाकिफ मगर ना हो सके उनकी जुबां से हम I
'दरवेश' हूँ दरवेश की दौलत है फकीरी,
अब सीमो-ज़र की नेमतें लाएं कहाँ से हम I
आई बहार दूर हुए आशियाँ से हम I
होगा न इस जहाँ में कोई हम सा बदनसीब,
मंजिल के पास आके छूटे कारवां से हम I
हम से खुद अपना साया ही बेज़ार हो गया,
शिकवा करें तो क्या करें उस मेहरबान से हम I
इस गर्दिशे-दौरां की ये गर्दिश तो देखिए,
फिर आ गए वहीँ पे, चले थे जहाँ से हम I
कहना न फिर कि तालिबे-रेहमत न था कोई,
जाते हैं उठ के आज तेरे आस्तां से हम I
थी आरजू कि हम भी समझते कुछ उनकी बात,
वाकिफ मगर ना हो सके उनकी जुबां से हम I
'दरवेश' हूँ दरवेश की दौलत है फकीरी,
अब सीमो-ज़र की नेमतें लाएं कहाँ से हम I
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