Sunday, 9 November 2014

ज़ाहिर था वो होंगे न अपने

ज़ाहिर था वो होंगे न अपने,
         फिर भी उनसे प्यार किया I
उनसे बिछुड़ कर उनकी खातिर,
          जीने का इकरार किया I

देखा था किस शोख अदा से,
           सोई उम्मीद जाग उठी I
अब ये फेरी नज़रें कैसी,
          जीने से बेज़ार किया I

यूँ तो हकीकत साफ अयां थी,
          प्यार के झूठे वादों की I
दिल ने, लेकिन एक न मानी,
          उन पे यकीं सौ बार किया I

याद में उनके नींद कहाँ थी,
          तारे गिन गिन रात कटी I
आपस में इक पल मिलने को,
          पलकों ने इंकार किया I

दुनिया में 'दरवेश' न जाने,
          किसकी तमन्ना ले आई I
भटकाया दर दर ले जाकर,
          कूचे कूचे ख्वार किया I 

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