Wednesday, 5 November 2014

हम अपने सीने में इक आग-सी लगाये हुए,

हम अपने सीने में इक आग-सी लगाये हुए,
फिरे जहाँ में किसी राज़ को छिपाए हुए I

हमारे जौके जुनूं से है ज़िंदगी बेज़ार,
गमे हयात से हम भी हैं तंग आए हुए I

झलक रहा है लहू आंसुओं में देख अय दिल,
ये रंग लाये हैं फ़ितने तेरे जगाये हुए I

ठगी ठगी सी हर इक सू भटक रही है नज़र,
तिलिस्मे-हुस्न के पैहम फरेब खाए हुए I

बुझा अभी से न अय मर्ग बार बार आकर,
किसी की आस में हम हैं दिया जलाये हुए I

कभी तो आएंगे वो आलमे-तसव्वुर में,
हम इंतज़ार में बैठे हैं लौ लगाये हुए I

गुज़र गए वो ये कहकर करीब से 'दरवेश',
ये कौन राह में बैठा है सर झुकाये हुए I 

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