Thursday, 6 November 2014

ये ज़िक्र है फजूल कि था कोई हमारा

ये ज़िक्र है फजूल कि था कोई हमारा,
दुखती हुई रग है इसे छेड़ो न, खुदरा I

दामन छुड़ाए जाती है क्यों मुझसे जवानी,
चौखट पे आज आके, मुझे किसने पुकारा ?

आपस में बाँट लेते हैं गम बीबी औ' शौहर,
औलाद कब होती है बुढ़ापे का सहारा I

ये शुक्र है कि शाम से ही खुल गई आँखें,
दिन आज का तो कल की उम्मीदों में गुज़ारा I 

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