गैरों में कोई अब गैर नहीं,
अपनों में कोई अपना न रहा,
अपनों के करम जब याद आए,
गैरों से कोई शिकवा न रहा I
होता है किसी का ज़िक्र कभी,
जाने क्यों दिल भर आता है,
जब अपने ही अपने न रहे,
अब कोई किसी का रहा, न रहा I
ये उनकी नज़र का इशारा था,
मौजों में रवानी जाग उठी,
तूफ़ान उठा, कश्ती डूबी,
अब कोई किसी को गिला न रहा I
परदा था कफ़न का चेहरे पर,
और वो भी किसी ने खींच लिया I
लो, देख भी लो दुनिया वालों,
अब तुमसे कोई परदा न रहा I
दिल में था समन्दर अश्कों का,
'दरवेश' कि वो भी लूटा बैठे,
रिस्ते हैं अभी कुछ ज़ख़्म वहां,
और पास कुछ इसके सिवा न रहा I
अपनों में कोई अपना न रहा,
अपनों के करम जब याद आए,
गैरों से कोई शिकवा न रहा I
होता है किसी का ज़िक्र कभी,
जाने क्यों दिल भर आता है,
जब अपने ही अपने न रहे,
अब कोई किसी का रहा, न रहा I
ये उनकी नज़र का इशारा था,
मौजों में रवानी जाग उठी,
तूफ़ान उठा, कश्ती डूबी,
अब कोई किसी को गिला न रहा I
परदा था कफ़न का चेहरे पर,
और वो भी किसी ने खींच लिया I
लो, देख भी लो दुनिया वालों,
अब तुमसे कोई परदा न रहा I
दिल में था समन्दर अश्कों का,
'दरवेश' कि वो भी लूटा बैठे,
रिस्ते हैं अभी कुछ ज़ख़्म वहां,
और पास कुछ इसके सिवा न रहा I
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