हद्दे वफ़ा से अपनी, अभी बेखबर हूँ मैं I
वो आये या न आये मगर, मुन्तज़र हूँ मैं I
कहती है आहे सर्द ये उठ उठ के बार बार
लब तक मुझे न खींच, अभी बेअसर हूँ मैं I
आलमे-दहर मुझ पे गुज़रते चले गए
गोया मुसीबतों के लिए रह-गुज़र हूँ मैं I
तौबा शराबो-शर से मैं कर लूं हज़ार बार I
तौबा (डरता हूँ) ये टूट जाएगी आखिर बशर हूँ मै I
दुनिया-ए रंगीं के फरेबों से होशियार,
महवे-तलाशे-हुस्न सरापा नज़र हूँ मैं I
कैदे-हायत बारे-नफ़स जाने-न- तवां,
परवाज़ की है आरज़ू बे-बालो-पर हूँ मैं I
कब तक किसी की राह में जलता रहूँगा और,
लौ टिमटिमाती रही है, चिराग़े-सहर हूँ मैं I
'दरवेश' चल रहे कहीं दैरो हराम से दूर,
फितवा है अहले-दीन का आशुफ्त-सर हूँ मैं I
वो आये या न आये मगर, मुन्तज़र हूँ मैं I
कहती है आहे सर्द ये उठ उठ के बार बार
लब तक मुझे न खींच, अभी बेअसर हूँ मैं I
आलमे-दहर मुझ पे गुज़रते चले गए
गोया मुसीबतों के लिए रह-गुज़र हूँ मैं I
तौबा शराबो-शर से मैं कर लूं हज़ार बार I
तौबा (डरता हूँ) ये टूट जाएगी आखिर बशर हूँ मै I
दुनिया-ए रंगीं के फरेबों से होशियार,
महवे-तलाशे-हुस्न सरापा नज़र हूँ मैं I
कैदे-हायत बारे-नफ़स जाने-न- तवां,
परवाज़ की है आरज़ू बे-बालो-पर हूँ मैं I
कब तक किसी की राह में जलता रहूँगा और,
लौ टिमटिमाती रही है, चिराग़े-सहर हूँ मैं I
'दरवेश' चल रहे कहीं दैरो हराम से दूर,
फितवा है अहले-दीन का आशुफ्त-सर हूँ मैं I
No comments:
Post a Comment