Sunday, 9 November 2014

जलाया आशियाँ उसने

जलाया आशियाँ उसने, जिसे हम रौशनी समझे I
बड़े नादान थे हम, इश्क को ही ज़िंदगी समझे I

रहे खामोश, अपने सामने दुनिया लुटी अपनी,
रज़ा समझे हम उनकी और अपनी बेहतरी समझे I

फ़ुगां बन बन के आती थी लबों पे आरजू अपनी,
न कहना लब को सी लेना शऊरे-बंदगी समझे I

सरे महफ़िल भर आई आँख, वो समझे ये है शिकवा,
न जाने कौन क्या समझा, मगर वो तो यही समझे I

रकीबे रूसिया हम तो समझते हैं तेरी घातें,
मगर, अय काश वो जाने-तमन्ना भी कभी समझे I

न जाने क्या है आईने-वफ़ा, हम तो यह समझे,
जो हम समझे गलत समझे, जो वो समझे सही समझे I

तमाशा देखिये 'दरवेश', जब जलता हो घर अपना
हमे दुनिया से क्या, दुनिया इसे भी दिल्लगी समझे I 

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