Sunday, 2 November 2014

हम जंगल के रहनेवाले

(यह कविता राजाबरारी के आदिवासी बच्चों के लिए लिखी थी - जिसे उन बच्चों ने अपने गुरु महाराज के सामने पेश किया था I )

हम जंगल के रहनेवाले, उनकी बस्ती में आये हैं I
कुछ पास नहीं था, क्या लाते, बस प्यार लुटाने आये हैं I

फल फूल उन्हें जो पेश करें, जंगल में ऐसे फूल नहीं I
मेवा मिष्ठान बने जिनसे, वो कन्द नहीं वो मूल नहीं I
वह तो फिर भी चावल लाया,हम लए हैं 'कोदों, कुटकी' I
झोली में क्या है मत पूछो, मक्का, सांवा, तेंदु, इमली I
हम चट्टानों से चुन चुन कर, महुआ की कलियाँ लए हैं I

हम जंगल के ........

है दूर दूर तक सन्नाटा, चिल्लाओ कोई नहीं सुनता I
आवाज़ कहाँ खो जाती है, खुद को भी पता नहीं चलता I
सहमा सहमा सा आलम है, पत्ता भी एक नहीं हिलता I
यूँ तो मिलने आ जाये कोई, पर अपना कोई नहीं मिलता I
अपने मन का सारा दुखड़ा, हम तुम्हें सुनाने आये हैं I

हम जंगल के .....

हमें सोना चाँदी ...... नहीं चाहिए I
हमें हीरा मोती ...... नहीं चाहिए I
हमें घोडा हाथी ...... नहीं चाहिए I
हमें पैसा कौड़ी ...... नहीं चाहिए I
हमें माखन रोटी ...... नहीं चाहिए I
हमें हलवा पूड़ी ...... नहीं चाहिए I
हमें लाडू बर्फी ...... नहीं चाहिए I
हमें दूध जलेबी ...... नहीं चाहिए I
हमें पटका धोती ...... नहीं चाहिए I
हमें जूता टोपी ...... नहीं चाहिए I
तन ढकने को है एक बहुत, हमें और लंगोटी नहीं चाहिए I
बस धुल तुम्हारे चरनों की माथे पे चढाने आए हैं I

हम जंगल के .......

जंगल में भी आकर देखो, कैसी रंगीन फ़िज़ाएं हैं I
तन मन का सारा दुःख हर लें, वह महकी मस्त हवाएँ हैं I
करती अठखेली परबत से, काली घनघोर घटाएँ हैं I
बल खा के पेड़ों से लिपटी, ये चंचल चपल लताएँ हैं I
ये बन, परबत, जल के धरे, सब मिलकर तुम्हें बुलाते हैं I
कुछ बोल नहीं सकते फिर भी, रह-रह कर टेर लगाते हैं I
ओ! जान प्राण सब के प्रीतम, तुम प्रीत की रीत निभा जाना I
सौगंध तुम्हें इस धरती की, पहली फुर्सत में आ जाना I
तुम्हे चाहनेवाले और भी हैं, ये याद दिलाने आये हैं I

हम जंगल के ........

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