Monday, 10 November 2014

श्रद्धांजलि

 SOAMIDAS (DUA) DARVESH

23-Aug-1923 to 1-March-2005




 मेरे दद्दू .....

वह गज़लें जो बुनी गईं, तराशी गईं, कही गईं, सुनी गईं पर पिछले सत्तर सालों में उन्हें लिखा नहीं गया I वह गज़लें एक दिन किताब के रूप में सामने आएँगी ऐसा ना तो उस 'दरवेश' ने सोचा था ना ही इसकी चाहत की थी I चाहा था तो बस इतना की मेरी गज़लें उस खासो आम तक पहुंचें जिसमें इश्के हकीकी व दरवेश की फकीरी की समझ हो I उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, फारसी और ब्रिज भाषा; शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत की तर्ज़ पर बनी उनकी कई गज़लें तो बस मौके पर बनी, पढ़ी गईं और सब के दिलों में छाप छोड़ के खुद मिट गईं  I अक्सर उनसे पुछा जाता कि किताब में संजो कर क्यों नहीं रखते? तो जवाब होता -

सहारा पाते हैं मौजों का, उभर जाते हैं,
पिरोये जाते हैं धागों में, संवर जाते हैं I
मगर बताये कोई, इनको क्या कहूँ 'दरवेश'
गिर के आँखों से दामन पे बिखर जाते हैं I

जिन ग़ज़लों को हमारे परिवार के सदस्यों ने लिखित शब्दों में संजो लिया था वह 'कलामे दरवेश' के इस अंक में आपके सामने है I अन्य ग़ज़लें, गीत, शेर, शब्द और धुन उनके अनेक चाहनेवालों  के दिलों में गुंजन करते हैं I

इस किताब के हर पन्ने पर लिखा हर शब्द एक दिलदार - जिंदादिल शायर के दिल से लिखा गया और उनके हर चाहनेवाले के दिल ही में बसता है I 23 अगस्त 1923  को दयालबाग़ आगरा में जन्मे स्वामीदास दुआ की किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक की जीवनशैली  को ये पंक्तियाँ बयां करती हैं -

दरवेश-ए-कलाम फकीराना,अंदाज़े बयां शाहाना है I

इश्के मज़ाज़ी से परे रहनेवाले और इश्के हकीकी में अपना वजूद पानेवाले उस शायर की आँखों में अपनी गज़लें कहते बरबस अश्क छलक आते थे, पर माथे पे कभी शिकन ना पड़ती I वे अपने आप को फ़कीर कहते थे और तखल्लुस था 'दरवेश' I उनके बेफिक्र नूरानी चेहरे और हरदम मुस्कुराते लबों से जब गंभीर रागों के कोमल-तीव्र सुरों की पेचीदगी में बंधे सरल शब्द सुनाई पड़ते तो सीधे श्रोताओं की रूह से रूबरू होते I हर ग़ज़ल पढ़ने के बाद उसमें छिपे, कुलमालिक के प्रति अपने प्रेम भावों को जब वो सरल शब्दों में समझाते तो उनकी आँखों में अजब चमक नज़र आती I वे तरन्नुम में गाते और अपनी ग़ज़लों के रस्ते दूसरी दुनिया में पहुँच जाते I

रूहानी शायर तो वो थे ही साथ ही एक जिंदादिल इंसान भी थे I हर उम्र, हर जाति, हर व्यवसाय और हर तबके के लोग - जो उनके संपर्क में आये - 'दरवेश साहब' ने सबसे 'याराना' सुरों में संपर्क साधा I 5 साल के बच्चे से लेकर बुज़ुर्गों तक उनकी दोस्ती थी I मेरी दोनों बुआओं, बड़े पापा और पापा के लिए वे मार्गदर्शक थे पर अपने दिखाए रास्ते पर वे उनके हमकदम बन कर चले I हम चारों पोते-पोतियों और उनके चारों नाति-नतिनों के वे 'Best  Friend' थे I कभी अपनी गोद में सर रख कर हमसे लाड करते, कभी जिंदगी के छिपे पहलुओं को समझाते, कभी 'दरवेश की दौलत' (उनका प्यार और शायरी) हम पर लुटाते, तो कभी खट्टी मीठी बातों को सुर में बांध कर मस्ती भरी तान छेड़ देते I दादी को अक्सर छेड़ते -

पराठे घी के बच्चों को और सूखी रोटियां मुझको,
न जाने क्या समझती है, मेरे बच्चों की माँ मुझको I

रोज़मर्रा की जिंदगी में भी होनेवाले छोटे बड़े वाकयों से प्रेरित होकर बरबस ही उनके लबों से ख्याल लफ़्ज़ों में ढल कर फूट पड़ता था I एक बार सड़क पर एक बस के आगे आने से वे कुछ क़दमों की दूरी से बचे और कह पड़े -

दो चार कदम गर हम बढ़ते तो ठेलम ठेला हो जाता I
दुनिया होती उनके पीछे, इक में ही अकेला रह जाता I

अपने जीवन में उन्होंने सबसे प्यार किया नफरत की तो सिर्फ अमीरी से I क्यों ना करते उनके पास दौलते फकीरी थी I

में दरवेश हूँ, हाँ! हाँ! मुझे दौलत से नफरत है,
जिसके पास जाती है, वो इंसां ही नहीं रहता  I

अपने जीवन के आखरी दस सालों में उन्होंने पैसे को हाथ तक नहीं लगाया I

क्यों ना हो मुझे मुबारक मेरी दौलते फकीरी,
किसी और की नहीं ये उन्हीं की दी हुई है I

राधास्वामी सत्संग दयालबाग़ की और उनकी अटूट आस्था उनकी सबसे बड़ी पूँजी थी I जिस तरह पूरे जीवन में दुनियावी मोह-माया, तेज भागती चीखती चिल्लाती जिंदगी जीने के बजाये सत्संग और शायरी के साथ शांत और सरल जीवन जिया उसी तरह शांत और सहज रूप से उनका देहावसान हुआ I 1 मार्च 2005 को प्रसन्नचित नींद में ही अपने कुलमालिक के पास चले गए I पर आज भी वो हमारे साथ हैं, पास हैं  I मेरी ऑंखें नम इसलिए हैं क्योंकि अब मैं उनकी गोद में सर रखकर उनका लाड प्यार नहीं ले सकती I पर अब भी उनका हर सुर - तान ग़ज़ल मुझे सुनाई पड़ता है I आँख बंद करते ही उका मुस्कुराता चेहरा और मेरे लिए फैली बाहें नज़र आती हैं I वो यहीं हैं, मेरे पास, मेरे दिल में I

कनिका दुआ
------------------------------------------------------------------------------------------------------------

आदरणीय फूफाजी  को समर्पित -
कितनी पूजा की कितने फूल चढ़ाये,
         घर घर अलख जगाई आमरण व्रत लिया है I
उनके घर न पहुँच सके, फिर कहा किसी ने,
        ' दरवेश साहब' ने अपना ठिकाना बदल लिया है I
                                                       - सूरज लाम्बा
------------------------------------------------------------------------------------------------------------

वो फ़कीर था शाह था या की शहंशाह ही था,
          वो जो भी था ऐलान तखल्लुस 'दरवेश' किया I

ज़िंदादिली थी ऐसी कि मरने मराने का क्या काम,
          वो तो बस यूँ ही सोया मौत को बदनाम किया I

हमको फख्र है कि हम हैं उनकी संतान,
         सहूलियतें शाहों सी दी और प्यार फकीरों सा किया I

हम थे नादाँ नालायक ये समझ ही न सके,
          जिनसे ली सेवा उन पर ही तो उपकार किया I

और बुढ़ापे में भी बचपने का वो प्यारा आलम,
         दद्दू ने पोतियों और पोतों को भी मात किया I

सुना है नात, गाकर ही बयां होती है,
          "वो गाता था बहुत अच्छा" मालिक ने ये फरमान किया I

जब अर्ज़ हुई कि दरवेश चल दिया है उधर,
         इनायतें कलम कुछ यूँ चली 'सही' निशान लग ही गया I
                                                     - ब्रह्म प्रकाश दुआ
                                                              (पुत्र)

अब ना साकी से सरोकार न पैमाने से

अब ना साकी से सरोकार न पैमाने से,
आज ये कैसी सदा आई है मयखाने से I

कोई रिन्दाने ख़राबात से इतना पूछे,
बज़्म से उठ के वो क्यों चल दिए बेगाने से I

प्यास होठों पे लिए और नमी आँखों में,
कोई इस हाल में रुखसत न हो मयखाने से I

ज़िंदगी रूठ गई आप गए हैं जब से,
मौत भी रूठ न जाये कहीं दीवाने से I

आप रहने दें अभी होशों ख़िरद की बातें,
क्या ये दीवाने समझ जायेंगे समझाने से I

अब भी रौशन हैं ख्यालों में तसव्वुर उनका,
अब भी निस्बत है कोई शम्मा की परवाने से I

उनको ये जश्न चिरागां हो मुबारक 'दरवेश',
जो कभी शम्मा से खेले कभी परवाने से I 

अपना दिल किसको दिखलाऊं

अपना दिल किसको दिखलाऊं, इक टूटा हुआ पैमाना है I
नज़रों में है क्या बतलाऊं, मैख़ाना है मैख़ाना है I

जब तुम ही नहीं वो बात नहीं, वो बात नहीं, वो रात नहीं I
वो साज़ नहीं वो साज़ नहीं, दिल क्या है इक वीराना है I

जब शोलए हुस्न ज़रा भड़का, तब तड़पा इश्क तो क्या तड़पा I
जो शम्मा के जलने से पहले, जल जाए वो परवाना है I

रहे इश्क में खुद को मिटा डाला, घर फूंका माल लूटा डाला I
तब उसने कहा शैदा है मेरा, दुनिया ने कहा दीवाना है I

उल्फत की कहानी क्या मैं कहूँ, कोई लम्बी चौड़ी बात नहीं I
वो मेरे है, मैं उनका हूँ, दिल क्या है, इक वीराना है I

किसके क़दमों का लिया बोसा, कि ये सोज़ गले में हुआ पैदा I
'दरवेश' कलाम फकीराना, अंदाज़े बयां शाहाना है !

आँखों में उनके नूर था

आँखों में उनके नूर था चेहरा था पुर-जलाल,
इतना तो मुझको याद है, इस के सिवा नहीं I

तौबा मेरे गुनाह किया मैंने क्या नहीं,
तेरा करम बेपनाह दिया तूने क्या नहीं I

मुझ से हज़ार होंगे तेरी बज़्म में, मगर,
जिसका न तुझ सिवा हो वो मेरे सिवा नहीं I

लाज़िम है क्या कि मैं ही कहूँ अपने दिल की बात,
ज़ाहिर है मुझ पे खूब, वो तुझ से छिपा नहीं I

कहने को था कहा भी मगर कैसे अब कहूँ,
कि कैसे तुमने हाँ कहा, कैसे कहा नहीं I

क्या हाल पूछते हो दमे वस्ल-ए-हबीब,
सब्रो करार क़ल्ब को मेरे रहा नहीं I

'दरवेश' बात हो न सकी दिल में रह गई,
सुनते तो वो ज़रूर पर कहते बना नहीं I 

आग सीने में लगी है

आग सीने में लगी है मुझे जल जाने दो,
दिल के टूटे हुए तारों पे मुझे गाने दो I

ज़िंदगी अपनी कटी खूने जिगर पी पी कर,
अब ज़रा तिश्नागिये-दिल को करार आने दो I

चैन लेने नहीं देते ये जिगर और ये दिल,
पड़ गए जान के पीछे मेरी, दीवाने दो I

चश्मे साकी की कसम दैरों हरम के झगडे,
सब मिटा दूंगा ज़रा होश मुझे आने दो I 

आज आई मेरी बारी अरे तौबा तौबा

आज आई मेरी बारी अरे तौबा तौबा!
ठान ली दर्द से यारी अरे तौबा तौबा !
वो हर इक गाम पे शाहों ने किए झुक के सलाम,
हम फकीरों की सवारी, अरे तौबा तौबा !
मैं तो समझा कि ये है बात फकत मेरी बात,
बात निकली वो तुम्हारी, अरे तौबा तौबा!
बहकी बहकी हुई वो होश की बातें लब पर,
छा गई कैसी खुमारी, अरे तौबा तौबा!
हाथ मैं हाथ लिया, साथ छुड़ाया सबका,
कैसी तकदीर संवारी, अरे तौबा तौबा!
दौलते-दिल न लूट ले धोखे से रकीब,
कह दिया है ये हमारी, अरे तौबा तौबा!
रूबरू उनसे कहें हाल भला होश कहाँ,
हो गया कैफ वो तारी, अरे तौबा तौबा!
देखना मुड़ के मुझे, हाय वो कातिल नज़रें,
हो गई जान से प्यारी, अरे तौबा तौबा!
नींद बनके वो चले आए करीब और करीब,
वो भी इक रात गुज़ारी, अरे तौबा तौबा!
कर के अपना मुझे, ललकार के दुनिया से कहा,
कौन 'दरवेश' .... भिखारी अरे तौबा तौबा!

आहे-दिल कारगर हो गई

आहे-दिल कारगर हो गई, दास्ताँ मुख़्तसर हो गई I

उठ गई जिस तरफ वो नज़र, सारी दुनिया उधर हो गई I
सज रहा था मेरा आशियाँ, बिजलियों को खबर हो गई I

जल रहा था नशेमन मेरा, बदलियों को खबर हो गई I
मैंने शम्मा जलाई मगर, रोते रोते सहर हो गई I

आरजू बन गई जुस्तजू , जिंदगी यूँ बसर हो गई I
मुझको 'दरवेश' कहते हैं सब, जबसे उनकी नज़र हो गई I 

इक अजब कैफ दिल पे तारी है

इक अजब कैफ दिल पे तारी है,
          कूच की आज अपनी बारी है I
बुलबुले झूम झूम गाती है,
           छा रही हर तरफ बहारी है I
कोई देखे तो उन निगाहों में,
           एक पैगामे वादा खारी है I
जाऊँगा उठ के चार कांधों पर,
          वाह किस शान की सवारी है !
ज़िंदगी दे के मुझसे यूँ बोले,
           ये अमानत फ़क़त हमारी है I
राजे उल्फत किसी पे क्यों खुलता,
           दिल तुम्हारा, ज़ुबां तुम्हारी है I
आम है हुस्नो इश्क के चर्चे,
          ये, मगर दास्ताँ हमारी है I
उनको है नाज़ अपनी रहमत पर,
           और मुझे नाज़े-गुनहगारी है I
हुस्न क्या है कशिश निगाहों की,
           इश्क अंदाज़े-जां-निसारी है I
ज़िन्दगी क्या है दौरे मयनोशी,
          मौत हल्की सी इक खुमारी है I
जान आँखों में रुक गई आकर,
          क्या खबर, किसकी इंतज़ारी है I
भूलते क्यों हो आज वो वादा,
          जिसपे काटी ये उम्र सारी है I
नींद आँखों में बन के आ जाओ,
          सारी शब जागते गुज़ारी है I
मान जाओ कि बात रह जाए,
          बात मेरी नहीं, तुम्हारी है I
मैं ही कुछ मुज़तरिब नहीं हूँ यहाँ,
           आज उन को भी बेकरारी है I
दर पे नज़रें लगाए रख 'दरवेश',
           कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है I

उनके सपने न खयालों में सजाए होते

उनके सपने न खयालों में सजाए होते,
हम न दुनिया की निगाहों में पराए होते I

क्या खबर थी कि उन्हें है अभी परदा मंज़ूर,
यूँ न अश्कों से दिये हम ने जलाए होते I

दिल का क्या है ये किसी तौर बहल ही जाता,
काश वो मेरे तसव्वुर में न आए होते I

भूल तो जाऊँ, मगर अब ये बहुत मुश्किल है,
इस कदर आप मेरे दिल पे न छाए होते I

बुझ तो जायेंगे ये शोले मेरे अरमानों के,
बात रह जाती अगर तुमने बुझाए होते I

आज शिकवा है तुम्हें, कल भी तो शिकवा रहता,
दाग सीने के अगर तुम से छिपाए होते I

ये तो अच्छा हुआ वादे न निभाए तुमने,
क्या रकीबों पे गुज़रती जो निभाए होते I

तुमने 'दरवेश' को जीने की कसम तो दे दी,
काश जीने के बहाने भी बनाए होते I 

अय! तौबा करो साहब

अय! तौबा करो साहब,
          अय! जाने भी दो साहब I
क्यूँ मुझको बनाते हो?
         क्यूँ फितना जगाते हो ?

वो मुझसे खफा है कुछ,
         माइल पै जफ़ा है कुछ,
अग़यार से मिलते है,
         और प्यार से मिलते हैं I
आखिर ये वजह क्या है ?
         यह कहर हुआ क्या है?
पहले तो न थे ऐसे,
         ये तौर हुए कैसे I
वो और कहें ऐसा,
         वो और करें ऐसा I
बहलाये गए होंगे,
         बहकाए गए होंगे I
अय! तौबा करो साहब I
         अय! जाने भी दो साहब I

क्यों कर ये मान लूँ मैं,
         और दिल में ठान लूँ मैं ?
वो आज भूल बैठे,
          वो ज़िंदगी के लम्हे I
पुर कैफ था ज़माना,
          मौज़ों में इक तराना I
आलम शबाब का था,
          जिसका जवाब न था I
मौजों में थी रवानी,
          उठती हुई जवानी I
सिक्के जमा रही थी,
          फ़ितने जग रही थी I
वो चाल बहकी बहकी,
          वो ज़ुल्फ़ महकी महकी I
जिस जां नज़र जमा दे,
          इक आग सी लगा दे I
माथे पे सुर्ख बिंदी,
           हाथों में लाल मेहंदी I
वो शोला जगाती थी,
           वो आग लगाती थी I
गुफ़्तार में तरन्नुम,
          हल्का सा इक तब्बसुम I
तूफान इक उठा दे,
          सौ बिजलियाँ गिरा दे I
आँखों में सुर्ख डोरे,
          अल्लाह रे बचो रे !
कुछ लाल कुछ गुलाबी,
          काफिर अदा शराबी !
डूबी हुई निगाहें,
           ले डूबे जिसको चाहें I
बिगड़े नसीब संवरें,
          हाय नशीली नज़रें  I
जिस सिम्त घूम जाए,
           आबिद भी झूम जाए I
ईमान लड़खड़ाये,
           औसान डगमगाए I
जायज़ हो मय-फरोशी,
           लाज़िम हो वादा-नोशी I
रुक जाएँ चाँद तारे,
           थम जायें तेज धारे I
झूमे नशे में आलम,
           मिट जायें फ़िक्र और गम I
रिन्द उठ के ले बालाएं,
          हाथों में जाम उठायें I
महशर-सा इक बपा हो,
           और शोर ये मचा हो I
ला और पिला साकी,
           है सांस अभी बाकी I
जाहिद भी जाम लेके,
          अल्लाह का नाम लेके I
दामन भिगो के मय में,
          कहता फिरे नशे में I
हाँ! बंदगी यही है,
          हाँ! ज़िंदगी यही है I
अय तौबादार पी लो,
          अय दीन-दार पी लो I
मरने से पहले जी लो!

मुत्तलिक न थे वो कमसिन,
          उन्हीं दिनों में इक दिन I
क्या जाने काम क्या था,
          पर, वक्त शाम का था I
खिड़की से सर झुकाकर,
          सब की नज़र बचाकर I
छिप कर किया इशारा,
          आहिस्ता से पुकारा I
मैं रुक गया ठिठक कर,
          वो रह गए झिझक कर I
हैरानगी थी मुझ पर,
          दीवानगी थी उन पर I
यहां खलबली मची कुछ,
          वहां बेकली बढ़ी कुछ I
गो जानते नहीं थे,
          पहचानते नहीं थे I
मेरी नज़र थी उन पर,
         उनकी निगाह मुझ पर I
कुछ ऐसे खो गए थे,
          तस्वीर हो गए थे !

अय ! तौबा करो साहब,
          अय ! जाने भी दो साहब I 

Sunday, 9 November 2014

कभी दिल तड़प उठा है

कभी दिल तड़प उठा है, कभी आँख रो पड़ी है,
ये भी कैसी ज़िन्दगी है, ये कैसी बेबसी है I

ये बुझाए क्या बुझेगी, जो लगी है बिन लगाए,
ये बताये क्या बनेगी, ये कहाँ कहाँ लगी है  ?

अय कि शम्मा फूंक डाला उसे क्यों गले लगा कर,
ये कहाँ की रस्मे-उल्फत, ये कहाँ की दोस्ती है !

सरे-लौ उठा धुआं-सा मगर, हाँ सदा ये आई,
मेरी आरज़ू यही थी, मेरी ज़िंदगी यही है  I

वो शराब थी कि क्या थी, ये तो जानता है साकी,
मैं तो इतना जनता हूँ - मैंने बेहिसाब पी है I

क्यूँ न हो मुझे मुबारक, मेरी दौलते फकीरी,
किसी और की नहीं ये, ये उन्हीं की दी हुई है I 

किसको सुनायें अपनी कहानी

किसको सुनायें अपनी कहानी,
         आग से खेली शोख जवानी I
ज़ाहिर था अंज़ामें-मुहब्बत,
        दिल ने, लेकिन एक न मानी I
दिल को अक्सर तड़पाती है,
          रात चांदनी, शाम सुहानी I
दीवाना कहती है दुनिया,
          क्या समझे हमको दीवाना !
रहने दो ये दाग जिगर के,
          अहदे-कुहन की एक निशानी I
सागर टूटा कब और क्यों कर,
          छेड़ न साकी बात पुरानी I
दुनिया को दरवेश बता दो,
          इश्क है सच्चा, दुनिया फानी I 

किसने किसका साथ निभाया

किसने किसका साथ निभाया,
          कौन किसी के काम आया I
दिल भर आया, आँख भर आई,
          लब पे ये किसका नाम आया I

आग लगी घर बार लुटा,
          पर, अपनी नज़रें थी उनपर I
बात है क्या, क्या काम है हम से,
          उनका ये पैगाम आया I

जिसके बोझ से बोझिल थीं
          बेज़ार थी खुद उनकी डाली I
उन काँटों से प्यार किया (क्यों),
          बस हम पर ये इलज़ाम आया I

सागर छूटे, शीशे टूटे,
          महशर (शोर) था मयखाने में I
साकी ने तौबा  कर ली,
          जब मेरे लबों पर जाम आया I

वो 'दरवेश' कि जिसने कभी
          मुड़कर भी न देखा दुनिया को I
अब ये हाल कि उसके पीछे,
          सुबह गया और शाम आया I 

क्या खबर थी उन्हें मलाल होगा

क्या खबर थी उन्हें मलाल होगा, और सबब इक मेरा सवाल होगा I
मिट गया उनके एक वादे पर, ये न सोचा की क्या मआल होगा I

जी रहा हूँ कि है मुझे उम्मीद, आएगी मौत और विसाल होगा I
इस तरफ रूह मेरी तिशन-ए-दीद, उस तरफ हुस्न बेमिसाल होगा I

नूर आँखों में लब पे इक नगमा, और चेहरे पे इक जलाल होगा I
जिंदगी उनके हाथ में दे दी, मुझको मरना भी अब मुहाल होगा I

मुझसे कहदे कोई फकत इतना, उनको मेरा कभी ख्याल होगा I
मुस्कुराये वो बेबसी पे मेरी, उनकी रेहमत का ये कमाल होगा I

सामने उनके क्या बनेगी बात, साँस लेना भी इक बवाल होगा I
मेहरबां गर वो हो गये 'दरवेश', क्या तेरे आंसुओं का हाल होगा I 

खूने जिगर पिया तो कभी अश्क पी लिए

खूने जिगर पिया तो कभी अश्क पी लिए,
उनको ख़ुशी यही थी, हम ऐसे ही जी लिए I

अय मर्ग, कौन उनका मसीहा तेरे सिवा,
बैठे है तेरी राह में जो ज़िंदगी लिए I

नफरत की आँधियाँ तो बुझाती रही उन्हें,
अब भी हैं कुछ चराग, मगर, रौशनी लिए I

पूजा गया उन्हें कभी ठुकरा दिया गया,
तामीर इन बुतों की हुई क्या इसलिए ?

वर्के जमाल कौंद गई, तूर जल गया,
जब उठ गई किसी की नज़र तिश्नगी लिए I

कहता है हर कोई कि ये दीवाना कौन है ?
मिलता हूँ जब किसी से लबों पे हंसी लिए I

जाँ-बाज़ महदो-माह से आगे है गामज़न,
देखो किये हम, आरजू परवाज़ की लिए I

'दरवेश' कोई देखे ये मजबूरिये वफ़ा,
बात आई थी जुबां पे, मगर, होठ सी लिए  I 

गैरों में कोई अब गैर नहीं

गैरों में कोई अब गैर नहीं,
          अपनों में कोई अपना न रहा,
अपनों के करम जब याद आए,
          गैरों से कोई शिकवा न रहा I

होता है किसी का ज़िक्र कभी,
          जाने क्यों दिल भर आता है,
जब अपने ही अपने न रहे,
          अब कोई किसी का रहा, न रहा I

ये उनकी नज़र का इशारा था,
        मौजों में रवानी जाग उठी,
तूफ़ान उठा, कश्ती डूबी,
        अब कोई किसी को गिला न रहा I

परदा था कफ़न का चेहरे पर,
          और वो भी किसी ने खींच लिया I
लो, देख भी लो दुनिया वालों,
          अब तुमसे कोई परदा न रहा I

दिल में था समन्दर अश्कों का,
          'दरवेश' कि वो भी लूटा बैठे,
रिस्ते हैं अभी कुछ ज़ख़्म वहां,
          और पास कुछ इसके सिवा न रहा I 

छुड़ाए जाते हो अपना दामन

छुड़ाए जाते हो अपना दामन,
          बना के हम से ये क्या बहाना I
चले हो दिल को रुला रुला कर,
          कसम है तुमको न याद आना I

वो खिलखिलाना, वो चहचहाना,
         वो गुनगुनाना, वो मुस्कुराना,
वो प्यार के दिन, बहार के दिन,
          भुला सको गर तो भूल जाना I

 शिकायतें वो हंसी हंसी में,
        इनायतें वो चुभी चुभी सी,
वो रूठ जाना, मचल मचल के,
         मनाये कोई तो मान जाना I

ये कैसा आलम है बेबसी का,
          किसी पे बस अब नहीं किसी का,
भर आई आँखें, तड़प उठा दिल,
          हज़ार रोक, कोई न माना I

चले हो महफ़िल से आज उठकर,
         जो दिल से जाओ तो हम भी जानें,
तड़प के दे देंगे जान अपनी,
          न भूल कर हमको आज़माना I

कसम है तुमको न याद आना,
          तुम्हें कसम है न याद आना I 

छिपाया मैंने क्यूँ कर राजे उल्फत

छिपाया मैंने क्यूँ कर राजे उल्फत, कोई क्या जाने I
ये क्या फ़ितने जगाती है मुहब्बत, कोई क्या जाने I

निगाहें सब की उठती हैं फ़क़त मेरे गुनाहों पर,
मगर क्या क्या हुई है मुझपे रेहमत, कोई क्या जाने I

बहुत रोका ज़माने ने, न जा तू उनकी महफ़िल में,
मेरी उस देर पे मर मिटने की हसरत, कोई क्या जाने I

है दिल की धड़कनें उनकी, कि इक इक साँस भी उनकी,
कि है ये जिंदगी उनकी अमानत, कोई क्या जाने I

सुराही हाथ में, होठों पे जाम और दिल में याद उनकी,
यही रिन्दों का है तर्जे-इबादत, कोई क्या जाने I

शमा पे जल के परवाना बुझा लेगा लगी दिल की,
मगर क्या है क़यामत मेरी वहशत, कोई क्या जाने I

फ़रिश्ते गिड़गिड़ा कर मांगते हैं अश्क के मोती,
लुटा दी मैंने रो रो कर वो दौलत, कोई क्या जाने I

न ले जाओ मुझे बस्ती में, वीराने में रहने दो,
बसाई थी यहीं मैंने वो जन्नत, कोई क्या जाने I

न शाहों को मिला, मुझको मिला 'दरवेश' का रुतबा
हुई है किसकी ये नज़रे-इनायत, कोई क्या जाने I 

जफ़ा ब-ज़िद है की मुंह मोड़ लूँ वफाओं से

जफ़ा ब-ज़िद है की मुंह मोड़ लूँ वफाओं से,
वफ़ा ये कहती है, तू प्यार कर जफ़ाओं से I

गुनाह देते हैं तरग़ीब, मैं दुआ कर लूँ,
दुआ ये कहती है तू बाज़ आ, गुनाहों से I

इक आह ऐसी उठी थी कि शोला जाग उठा,
और अब ये शोला बुझा जा रहा है आहों से I

खुदा के आसरे तूफां में छोड़ दी कश्ती,
चला हूँ दूर मैं, तंग आके, नाख़ुदाओं से I

उठाए अब्रे-करम शर्म-सार हैं नाले,
बढ़ी हुई हैं कहीं बदलियाँ हवाओं से I

निगाह को है ये हसरत कि वो जुबां होती,
जुबां खामोश है, बात हो तो हो निगाहों से I

करीब दिल के पुकारा किसी ने अय 'दरवेश',
उठी वो हुक कि दिल गूँज उठा सदाओं से I 

जलाया आशियाँ उसने

जलाया आशियाँ उसने, जिसे हम रौशनी समझे I
बड़े नादान थे हम, इश्क को ही ज़िंदगी समझे I

रहे खामोश, अपने सामने दुनिया लुटी अपनी,
रज़ा समझे हम उनकी और अपनी बेहतरी समझे I

फ़ुगां बन बन के आती थी लबों पे आरजू अपनी,
न कहना लब को सी लेना शऊरे-बंदगी समझे I

सरे महफ़िल भर आई आँख, वो समझे ये है शिकवा,
न जाने कौन क्या समझा, मगर वो तो यही समझे I

रकीबे रूसिया हम तो समझते हैं तेरी घातें,
मगर, अय काश वो जाने-तमन्ना भी कभी समझे I

न जाने क्या है आईने-वफ़ा, हम तो यह समझे,
जो हम समझे गलत समझे, जो वो समझे सही समझे I

तमाशा देखिये 'दरवेश', जब जलता हो घर अपना
हमे दुनिया से क्या, दुनिया इसे भी दिल्लगी समझे I 

ज़हरे-हस्ती ब-लबे तिश्ना पिए जाते हैं

ज़हरे-हस्ती ब-लबे तिश्ना पिए जाते हैं,
लुत्फ़ जीने में नहीं, और जिए जाते हैं I

हो न मयखानों की राहों में कहीं राह तेरी,
देरों-काबा तो मुझे दूर लिए जाते हैं I

इश्क में शिकवा-शिकायत औ' गिला, क्या मानी,
उनकी हर बात को तस्लीम किए जाते हैं I

बेखुदी शर्त नहीं, महवे-नज़ाराँ के लिए,
होश रहता है,मगर होठ सीए जाते हैं I

बख्श देते हैं, वो खुशियां तो सभी को 'दरवेश',
गम के लम्हात फकीरों को दिए जाते हैं I 

ज़ाहिर था वो होंगे न अपने

ज़ाहिर था वो होंगे न अपने,
         फिर भी उनसे प्यार किया I
उनसे बिछुड़ कर उनकी खातिर,
          जीने का इकरार किया I

देखा था किस शोख अदा से,
           सोई उम्मीद जाग उठी I
अब ये फेरी नज़रें कैसी,
          जीने से बेज़ार किया I

यूँ तो हकीकत साफ अयां थी,
          प्यार के झूठे वादों की I
दिल ने, लेकिन एक न मानी,
          उन पे यकीं सौ बार किया I

याद में उनके नींद कहाँ थी,
          तारे गिन गिन रात कटी I
आपस में इक पल मिलने को,
          पलकों ने इंकार किया I

दुनिया में 'दरवेश' न जाने,
          किसकी तमन्ना ले आई I
भटकाया दर दर ले जाकर,
          कूचे कूचे ख्वार किया I 

जो मेरा हाल है मिन्नत-कशे-बयां क्यूँ हो

जो मेरा हाल है मिन्नत-कशे-बयां क्यूँ हो,
करे जो शिकवा-ऐ-गम वो मेरी जुबां क्यूँ हो I

अता हुआ है अगर सोज़ चुपके-चुपके जल,
कहीं पे शोला उठे और कहीं धुंआ क्यूँ हो I

उठाये फिरते हैं काँधे पे लाश खुद अपनी,
हमारा बोझ किसी और पर गिरा क्यूँ हो I

हर इक इशारे पे जब ख़म रहा कहीं तस्लीम,
वफ़ा के नाम पे अब और इम्तेहां क्यूँ हो I

तेरे नसीब में खुशियां नहीं जब अय 'दरवेश'
कोई निगाहें- करम तुझपे मेहरबां क्यूँ हो I 

टूट जाते हैं - सहारों का भरोसा क्या है ?

टूट जाते हैं - सहारों का भरोसा क्या है ?
छूट जाते हैं - किनारों का भरोसा क्या है ?

हो न तकदीर पे मगरूर किसी का हो जा,
कब पलट जायें - सितारों का भरोसा क्या है ?

ऐतबार उनके हर इक वादे पे सौ बार किया,
हाय, उम्मीद के मारों का भरोसा क्या है ?

इश्क वो है जो रग-रग मैं धुआं बनके उठे,
दिल के खामोश शरारों का भरोसा क्या है ?

जलवा-ए-यार पे 'दरवेश नज़र रख अपनी,
दहरे-फानी के नज़रों का भरोसा क्या है ?

(सगरो मय) चश्मे साकी, ---कसम तोड़ दे तौबा पी ले I
फिर जवानी की बहारों का भरोसा क्या है ?

टूटे दिल को एक सहारा

टूटे दिल को एक सहारा, दर्द मिला सौ जान से प्यारा I
शिकवा-ए-गम इज़हरे-तमन्ना,क्या करता उम्मीद का मारा I

जौरे-मसलसल खुए-जफ़ा ने, नक़्शे-वफ़ा को और उभरा I
तुम क्या रूठे, दुनिया रूठी, कर बैठी है मौत किनारा I

गूँज उठा हर तार नफ़स का, किसने मुझको आज पुकारा?
किसको अय 'दरवेश' बतायें, कोई न समझा दर्द हमारा I 

ढाए जा ज़ुल्मों सितम

ढाए जा ज़ुल्मों सितम, अय आस्मां कुछ और अभी.
है अभी कुछ मेहरबां ना-मेहरबाँ कुछ और अभी I

आपने नक़्शे-वफ़ा यूँ तो मिटा डाला, हज़ूर,
हैं मगर आइना-ए-दिल पर निशां कुछ और अभी I

ये न समझो थी फकत मेरे नशेमन पर नज़र,
झांकती है ज़ेरे चिलमन बिजलियाँ कुछ और अभी I

थे हमीं इक बेज़ुबां जो आह भर कर रह गए,
आह सीने मैं लिए हैं बेजुबां कुछ और अभी I

मुस्कुराते हो सितारों क्यों मेरी तकदीर पर,
ये न भूलो तुमसे आगे हैं जहाँ कुछ और अभी I

चूमने को पाँव तेरे अय रकीबे-बुल-हवस,
ढल रही है सीमों-जर में बेड़ियां कुछ और अभी I

आपने अब तक सुनी जो मेरे अश्कों ने कही,
बिन कही और बिन सुनी है दास्ताँ कुछ और अभी I

जब उठा दिल से धुआं वो कह उठे, बस अब नहीं,
हम सदा देते रहे अय जाने-जां कुछ और अभी I

मुस्कुरा कर यूँ कहा 'दरवेश' खस्ता-हाल पर,
बारे-गम कुछ और जियादा इम्तिहान कुछ और अभी I 

तसव्वुर वस्ल का तड़पा रहा है

तसव्वुर वस्ल का तड़पा रहा है अब रगे-जां को,
निगाहें चूम लेना चाहती है रूहे-जाना को I

लुटाने आ रहा है खुम के खुम कोई सरे महफ़िल,
कहाँ ले जाऊं, अय जाहिद, खयाले-क़ुफ़्रो-इमां को I

नवाये आरजू है दामने-उम्मीद फैला दूँ,
तक़ाज़ाए-जुनूं है चाक कर डालूँ गरेबां को I

पहुंचना चाहते हैं उनके दामन तक मेरे आंसू,
तलाशे-साहिले-अम्नो- अमां है मौजे तूफां को I

महो-अंजुम में चर्चे है, सवेरा होने वाला है,
बुझा देगा कोई हल्का सा झोंका शम्मे सोज़ाँ को I

उलझती जा रही है और भी कुछ उलझने मेरी,
खुदारा, अब न सुलझाइयेगा जुल्फें-परेशां को I

खुशी के अश्क भी आँखों में भर आयें न, अय 'दरवेश',
किसी सूरत अयां होने न देना सोज़े पिनहा को I 

तेरी कायनात सरूर में

तेरी कायनात सरूर में, मेरे क्लब को न मिली अमां I
ये खाबो-चंग मैं क्या करूँ, है खामोश क्यों ये सरोदे जाँ I

है खिज़ा के साथ बहार भी, है तड़प के साथ करार भी I
शबे-गम की भी हो सहर कभी, ये भला नसीब मेरा कहाँ I

हमे सोज़े-इश्क ने क्या दिया, गई नींद सब्रो सुकूं गया I
यूँ तड़प-तड़प के जला है दिल, कोई लौ उठी न उठा धुआं I

ये तो जाहिद अपना नसीब है, कि मिला है वादा-नाशी में क्या I
मुझे बूँद बूँद में जिंदगी, तुझे घूँट घूँट में तल्खियाँ I

है ख़िरद को शौक बढ़े चलो, है सदाए-दिल कि ज़रा रुको I
मुझे क्या खबर कि रुकें कहाँ, मेरी जिंदगी का ये कारवां I

है कदम कदम पे रुकावटें, तेरे पास आके भी दूर हूँ I
कहीं ज़ोह्दो-तकबा कि बंदिशें, कहीं दैरो-क़ाबा है दरमियां I

है हज़ारों शम्सो कमर, मगर, न मिलेगी कल्ब को रोशनी,
दिलो-दीदा है तेरे मुन्तज़र, ज़रा बेनकाब हो शम्मे जां I

तेरी याद है मेरी बंदगी, तेरी आस है मेरी जिंदगी I
जो रज़ा तेरी वो ख़ुशी मेरी, तेरा गम है रहते-जां-विदा I

हो नसीब अर्शे-बरी उन्हें, जिन्हे आरजू है बहिश्त की I
तेरे रिन्द को मेरे साक़िया, तेरा संगे-दिल तेरा आसतां I

'दरवेश' काम सफर से है, जहाँ थक गए वहीँ रुक गए I
नींद आगई कहीं सो रहे, न तो घर कहीं न कोई मकां I 

तू जो मयख़ान से बेगाना रहेगा, साकी !

तू जो मयख़ान से बेगाना रहेगा, साकी !
कौन मयखाने को मयखाना कहेगा, साकी ?

जाने-मयखाना है तू ज़ीनते-महफ़िल भी तू,
मय-फ़रोशों से न ये काम बनेगा, साकी !

रहम कर छोड़ दे ये तर्ज़े-तग़ाफ़ुल वरना,
सागरो-मय का कोई नाम ना लेगा, साकी !

मयकदे में तेरे इक हश्र का आलम होगा,
कोई गीता, कोई कुरआन पढ़ेगा, साकी !

दम भरेगा न कोई तुझसे रानासाई का,
अपने सर कौन ये इलज़ाम रखेगा, साकी !

हौसले शेखों-बरहमन के ज़रा देखो तो,
कह रहे थे की ये मयखाना बिकेगा, साकी !

हम तेरी राह में शोलों को पिएंगे कब तक,
कब तक आखिर न धुंआ दिल से उठेगा, साकी !

ये तो मुमकिन है कोई और कहीं भर ले जाम,
तेरा 'दरवेश' तो प्यासा ही मरेगा, साकी !

तुम्हारे बिन कोई दूजा

तुम्हारे बिन कोई दूजा, कहीं वो तुम तो नहीं ?
मेरी नज़र पे ये पर्दा, कहीं वो तुम तो नहीं ?

लबों पे ज़हर का प्याला नज़र में अंगारे,
उठा वो कौन मसीहा, कहीं वो तुम तो नहीं ?

वो एक दाग है धब्बा है या कि नुक्ता है,
जो पी रहा है उजाला, कहीं वो तुम तो नहीं ?

ज़रा जो ठहर के देखा वफ़ा की राहों में,
खड़ा है कोई लुटेरा, कहीं वो तुम तो नहीं ?

उठा वो किसका ज़नाज़ा, वो कौन है 'दरवेश',
कि जिस पे हंसती है दुनिया, कहीं वो तुम तो नहीं ?

दम टूट चुका फिर भी नज़रें

दम टूट चुका फिर भी नज़रें, दर पर हैं लगी दीवाने की,
पथराई हुई आँखों में है, उम्मीद किसी के आने की I

अय शम्मा, भड़क धीरे धीरे, फिर आ न सकेंगे परवाने I
रह रह के जला, हंस हंस के मिटा, हसरत न रहे तड़पाने की I

तू सामने है फिर भी साकी, प्यासी नज़रें क्यूँ है प्यासी,
ज़ुल्फ़ों को हटा, पलकों को उठा, राहें न बता मयखाने की I

मिट्टी से उठा, गर्दिश में पड़ा, भरकर छलका पहुंचा लब पर
जब सुबह हुई टूटा गिर कर, रूदाद है ये पैमाने की I

अय शेख दमे-आखिर अब तो, पीने दे दम भर जीने दे,
कलमा न पढ़ा, फितवा न सुना, कर बात कोई बुतखाने की I

जिसकी खातिर 'दरवेश' हुए, घर फूंक दिया छोड़ी दुनिया I
वो भी न हुआ आखिर अपना, क्या पूछो बात ज़माने की I

दिल की धड़कन में है क्या राज़, हमें क्या मालूम

दिल की धड़कन में है क्या राज़, हमें क्या मालूम,
किसकी आती है ये आवाज़, हमें क्या मालूम ?

नालों पर तोल रहा है कोई चुपके-चुपके,
कौन है माइले-परवाज़, हमें क्या मालूम ?

तायरे-दिल ये कफ़स छोड़ के उड़ जाएगा,
घात में है कोई शाहबाज़, हमें क्या मालूम?

दूर तक कोई नहीं है, है बस इक जां तनहा,
साथ देगा कोई हम-साज़ हमें क्या मालूम ?

गीत बन-बन के उभर आए हैं शोले दिल के,
किस तरह सोज़ बना साज़, हमें क्या मालूम ?

है ये अंदाज़े-सुखन दिल से हो बातें दिल की,
और भी है कोई अंदाज़, हमें क्या मालूम ?

क्या कहा गुल ने कि शबनम के भर आये आंसू,
हुस्ने-मासूम के ये राज़, हमें क्या मालूम ?

ये तो मालूम है क्यों घर में उजाला है आज,
कौन है जलवगरे नाज़, हमें क्या मालूम ?

दिल सराबोर है शोलों में बहा कर 'दरवेश',
हो न ये इश्क का आगाज़, हमें क्या मालूम ?

दिल ने कहीं से गम का खज़ाना चुरा लिया

दिल ने कहीं से गम का खज़ाना चुरा लिया,
दुनिया हमें बताये कि दुनिया से क्या लिया ?

दुनिया गिरा चुकी थी नज़र से मुझे, मगर,
बस, आपकी निगाहे-करम ने उठा लिया I

मुतलक न थी नज़र मेरे ऐबो-सबाब पर,
मंज़ूर था किसी को निभाना, निभा लिया I

वल्लाह, उनकी देखिये ये शाने खुसरती,
मुझको गरीब जान के अपना बना लिया I

'दरवेश' कुछ न बच सका हम इस तरह लुटे,
इस दिल में उनकी याद थी, बस, दिल बचा लिया I 

Friday, 7 November 2014

दिल मैं सोया हुआ हर ज़ख्म उभारा मैंने

दिल मैं सोया हुआ हर ज़ख्म उभारा मैंने
जब तेरी याद को अश्कों से निखरा मैंने I

सागरों-मय की कसम, छोड़ दिए दैरो-हरम
पा के मखमूर निगाहों का इशारा मैंने I

डगमगाते हुए क़दमों से दिया है अक्सर
लड़खड़ाते हुए ईमां को सहारा मैंने I

पाये साकी पे नबी रख के बसद शौक-नयाज़
अपनी बिगड़ी हुई किस्मत को संवारा मैंने I

छा गया जिंदगी-ऐ-तल्ख़ पे जब गम का सरूर I
कर लिया हर ख़ुशी-औ-गम से किनारा मैंने I

आग सीने मैं लगी खाक हुए काल्बो-जिगर
शौला-ए-तूर को शीशे मैं उतारा मैंने I

अब भी टूटे हुए सागर से ये आती है  सदा
तुमको 'दरवेश' कई बार पुकारा मैंने I 

देखिये, आदमी को ये क्या हो गया

देखिये, आदमी को ये क्या हो गया,
            आदमी आदमी से बड़ा हो गया I
यूँ बिखर कर मेरी ज़िंदगी रह गई,
            जैसे कोई निशाना खता हो गया I
शुक्र है जान उनके हवाले हुई,
            एक क़र्ज़ था सर पर, अदा हो गया I
अपने हाथों से किसने तराशा इसे,
            एक पत्थर का टुकड़ा खुदा हो गया I
कह रहा है अँगुलियों से टपका लहू,
            शाख से फूल कैसे जुदा हो गया I
अय 'दरवेश' वो इश्क का बुलबुला,
            इक नाश था कभी का हवा हो गया I 

दो वरक थे मेरी कहानी के

दो वरक थे मेरी कहानी के, की वो दिन थे मेरी जवानी के I
मुझपे जादू किसी ने खूब किया, मुझको अपना बना के लूट लिया I
दिल में मेरे समा गया कोई, मेरी नज़रों पे छा गया कोई I
पास अपने मुझे बिठा कर के, बात करता वो मुस्करा कर के I
एक दिन यूं कहा कि आ पी ले, आज मरने से पहले तू जी ले I
मेरी आँखों में डाल दी आँखें, इसपे वो हाय चांदनी रातें I
क्या नशा था मैं खुद को भूल गया, और बाहों में उसकी झूल गया I
फिर न जाने उसे ये क्या सूझा, जाने क्या सोचा और क्या बूझा  I
उठके चुपके से चल दिया वो कहीं, मैं समझता रहा कि है वो यहीं I
होश आया तो देखता हूँ क्या, रात भीगी है चाँद है  फीका I
छीन कर मुझसे ज़िंदगी मेरी, साथ वो ले गया हँसी मेरी I
बेबसी में तड़प के सिर धुनता, मैं उठा और तलाश को निकला I
खिलती कलियों के मुस्कुराने से, नन्ही चिड़ियों के चहचहाने से I
मैंने जाना वो छुप गया है यहीं, रो के शबनम ने यूँ कहा कि नहीं I
बादलों से हवाओं से पुछा, मैंने रंगी फ़िज़ाओं से पुछा I
कोहसरोंमें आबशारों में, बहती दरिया की तेज धारों में I
कहकशां में व चाँद तारों में, मैंने ढूंढा उसे बहारों में I
थक के आखिर निराश हो बैठा, उस को पाने की आस खो बैठा I
नींद आँखों से उड़ गई मेरी, ज़िंदगी तल्ख़ हो गई मेरी I
हो के बेज़ार बन के आवारा, यों फ़िर हाय इश्क का मारा I
लंबे दरिया कभी चला जाता, उसकी मौजों से दिल को बहलाता I

एक जोगी का था वहां डेरा, दूर से हाल देखता मेरा I
एक दिन उठ के मेरे पास आया, दिल में उस के भी दर्द भर आया I
मुझसे कहने लगा कि अय हमदम, क्यूँ परेशां है और क्या है गम I
देखता हूँ उदास रहता है, बात क्या है जो दिल में सहता है I
क्या था और क्या हो गया तू, किन ख्यालों में खो गया तू I
न छुपा हाल मुझसे अब दिल का, कह दे हो जाये जी तेरा हल्का I
सुन के बातें ये उसकी प्यार भरी, बेकली यूँ दिल में होने लगी I
नक्श सोये हुए उभर आये, और जज़्बात कुछ उमड़ आये I
उसको अपना समझ बढ़ी हिम्मत, और होठों को हो चली हरकत I
बढ़कर किसी ने मुझको रोक लिया, ज़ोर से दिल मेरा दबोच लिया I
कह सकूँ कुछ, रहा न काबिल मैं, बात दिल की वो रह गई दिल में I
दर्द वो था कि में दबा न सका, एक तूफान था दबा न सका I
यह तो माना ज़ुबान न कह पाई, पर न मानी ये आँख भर आई I
दिल का प्याला ज़रा झलक ही गया, आँख से आंसू इक ढलक ही गया I
अश्क क्या था वो एक मोती था, जिसने देखा वो एक जोगी था I
जोहरी डाल कर के एक नज़र, जिस तरह से परखता है गौहर I
बस यों ही हाल दिल वो भांप गया, दर्द से इक बार काँप गया I
हाथ कानों पे रखके यूँ बोला, राहे उल्फत की मुश्किलें "तौबा" I

यूँ तो आसां थी इश्क की बातें, गर न होती ये हिज़्र की रातें I
रात फुरकत की कैसे कटती है, जानते हैं जिनपे घटती है I
तू मगर तोडना न मन की आस, तेरा प्रीतम सदा है तेरे पास I
है खबर क्यों ये दिल धड़कता है, इसमें वो ही तो छुप के बैठा है I
गौर से सुन कभी तू दिल का साज़, साफ़ आती है यार की आवाज़ I
दिल में पैवस्त हो गया है वो, तेरी आँखों में खो गया है वो I
बंद कर आँख और लब खामोश, सांस को रोक हो हमतन गोश I
एक हल्की सी गूँज आती है, इस तरफ यार है, बताती है I
बस उसी ओर तू निहार उसे, होक दीवाना तू पुकार उसे I
इस कदर रो की शक जिगर हो जाये, यूँ तड़प की उसे खबर हो जाये I
इस तरह जब उसे बुलाएगा, आएगा आएगा आएगा I
ख़त्म फिर दौरे जुस्तजू होगा, एक वो और एक तू होगा I
फिर जैसे बने बना लेना, बात बिगड़ी हुई बना लेना I

(आदरणीय दरवेश साहब ने 'दुसरे वरक' की भी रचना कर ली थी पर अफ़सोस कि कलमबद्ध करने से पहले ही उनका देहावसान हो गया I)

बाली पे मौत आकर बोली ये मुसाफिर

बाली पे मौत आकर बोली ये मुसाफिर !
रस्ते में थक गया है टूक नींद सो रहा है I

धीमी है दिल की धड़कन और सांस रुक चली है,
ये साज़े-ज़िंदगी अब खामोश हो रहा है I

है वो आज कुछ परेशां, है खलिश ये दिल में कैसी,
कोई जा उन्हें बता दे, 'दरवेश' रो रहा है I

गरदाब मेरी मंज़िल हर मौज है किनारा,
तूफ़ान बन के जब वो कश्ती डुबो रहा है I 

बे-बालों-पर हूँ आज, फ़ुगां में असर नहीं

बे-बालों-पर हूँ आज, फ़ुगां में असर नहीं,
मज़बूर उन से दूर कोई नामावर नहीं I

इक चश्मे-सिंहा-मस्त का मारा हुआ हूँ मैं,
जुज़-चश्मे-सिंहा-मस्त कोई चारागर नहीं I

था बरक़रार शोल-ए हस्ती जो अब तलक,
बुझने लगा है क्या करों खून जिगर नहीं I

हर बार इंतज़ार में जो हो गई सहर,
था जिसका इंतज़ार वो आई सहर नहीं I

कहते हो तुम तो उठ के चला जाऊंगा मगर,
क्यों कर तुम्हे बताऊँ, मेरा और दर नहीं I

मचली हुई है वर्क, गरजता है आस्मां,
क्या जाने तुम कहाँ हो, कोई रहगर नहीं I

फैज़े-दुआ है ये कि दुआ हो गई क़ुबूल,
कहता है कौन कि दुआ में असर नहीं I

कहता है दिल कि आज इधर से गए हैं वो,
ये उन के नक़्शे-पा हैं, ये शम्सो-कमर नहीं I

रहमत से अपनी आए, मगर कब चले गए,
जाने की मुझको, आने की उनको खबर नहीं I

इतने करीब आ के पुकारा कि चौंक उठा,
देखा इधर उधर वो कहीं थे, मगर नहीं I

आई निदा कि हो न परेशान सब्र कर,
है देर अभी दीद के काबिल नज़र नहीं I

'दरवेश' मार नफ़्स को राज़ी रज़ा में रह,
शाकिर हो सोज़े-हिज़्र में, हो वस्ल गर नहीं I 

Thursday, 6 November 2014

माना की रहा दिल निगहेदारे-तमन्ना

माना की रहा दिल निगहेदारे-तमन्ना,
अश्कों से, मगर, हो गया इज़हारे-तमन्ना I

मज़बूरे-मोहब्बत का ये आलम कोई देखे,
इन्कारे - तमन्ना है न इकरारे - तमन्ना I

होना ही पड़ा जलवा नुमा उनको सरे-तूर,
किस दर्ज़ा पुर इसरार है, इसरारे-तमन्ना I

दुनिया से तअल्लुक़ है न अबदी से सरोकार,
आज़ाद है यूँ तेरा गिरफ्तारे-तमन्ना I

'दरवेश' वो कहते हैं तमन्ना है तो हम हैं,
दिल हो गया कुछ और भी सरशारे-तमन्ना I 

मालूम न था इस जीवन में ऐसे भी दिन आ जायेंगे

मालूम न था इस जीवन में ऐसे भी दिन आ जायेंगे,
कहते थे जिन को हम अपना, वो बेगाने हो जायेंगे I

आया सावन दिल झूम उठा, खुशियों के तराने गूँज उठे,
सूनेपन में ये प्यार के दिन, याद आ आ के तड़पाएंगे I

याद आएँगी बीती बातें, भर आएँगी पागल आँखें,
तड़पेगा जिगर, दिल रोयेगा, हम किस किस को समझायेंगे?

मंज़िल के आगे है मंज़िल, रुकते हैं कब जाने वाले,
इतना तो मगर कहते जाओ, हाँ! लौट के फिर हम आएंगे I

करते हैं दुआ आबाद रहो, आबाद रहो दिल शाद रहो,
है दिल पे जो जख्म जुदाई के, धीरे धीर भर जायेंगे I 

माथे पे शिकन आई, न चेहरे पे मलाल आया

माथे पे शिकन आई, न चेहरे पे मलाल आया,
जब उनके इशारे पर, मिटने का सवाल आया I

पीने पे जो बात आई, हम पी गए आँसू,
रग-रग मैं उठे शोले, नस नस में उबाल आया I

उठते ही रहे शोले, अश्कों पे रहा काबु,
जीने का शऊर आया, जब जब्ते कमाल आया I

रह रह के खटकता था, कहते हैं मेरा दिल था,
कुछ देर हुई, उनके हाथों में सम्हाल आया I

खींचे था मेरा दामन, रोके था मेरा रास्ता,
वो जज्बा ए खुद्दारी, मैं दिल से निकाल आया I

पुछा है रकीबों से, 'दरवेश' पे क्या गुज़री,
ये उनकी नवाज़िश है, इतना तो ख्याल आया I 

मैं तो पीता नहीं कुछ वो ही पिला देते हैं

मैं तो पीता नहीं कुछ वो ही पिला देते हैं,
ज़िक्र तौबा करो महफ़िल से उठा देते हैं I

क्या मिटाएगी भला गर्दिश अय्याम उनको,
इश्क की राह में जो खुद को मिटा देते हैं I

बंदगी क्या है तेरी, ये नहीं मालूम हमें,
नक़्शे-पा कोई दिखे, सर को झुका देते हैं I

आतिशे दिल पे भला ज़ोर है कब अश्कों का,
ये बुझाएंगे तो क्या, और लगा देते हैं  I

बात कहने की नहीं, हम पे है क्या क्या बीती,
आप से कौन छिपाए, लो बता देते हैं I

कुछ तो आँसू मेरे कहते हैं फ़साना मेरा,
कुछ वो खामोश निगाहों से सुना देते हैं I

इक नया दर्द दिया, सोज़ दिया, साज़ दिया,
तेरी दुज़दीदा निगाहों को दुआ देते हैं I

निगाहे-खास से देखा मुझे और हँस बोले,
जा, तुझे शाह से दरवेश बना देते हैं  I 

ये ज़िक्र है फजूल कि था कोई हमारा

ये ज़िक्र है फजूल कि था कोई हमारा,
दुखती हुई रग है इसे छेड़ो न, खुदरा I

दामन छुड़ाए जाती है क्यों मुझसे जवानी,
चौखट पे आज आके, मुझे किसने पुकारा ?

आपस में बाँट लेते हैं गम बीबी औ' शौहर,
औलाद कब होती है बुढ़ापे का सहारा I

ये शुक्र है कि शाम से ही खुल गई आँखें,
दिन आज का तो कल की उम्मीदों में गुज़ारा I 

ले आई कहाँ मुझको इक लग्ज़िशे-मस्ताना

ले आई कहाँ मुझको इक लग्ज़िशे-मस्ताना,
हम-राह चला आया मयखाने का मयखाना I

मयखाने से निकला मैं, बहके हुए क़दमों से,
पीछे मेरे काबा था, आगे मेरे बुतखाना I

वो कैफ था साकी तेरी सरशार निगाही का,
महशर में भी पहुंचा तो रहा होश से बेगाना I

अय शम्मा, तेरी लौ में जादू है की टोना है,
मर-मर के न जाने क्यूँ, जी उठता है परवाना I

दीवाना बनाते हो, दीवाने को समझाकर,
दीवाना न समझेगा, दीवाना है दीवाना I

रिन्दाना मिज़ाज़ अपना काम आ ही गया आखिर,
वो दिल में उतर आए पैमाना-ब-पैमाना I

'दरवेश' उन आँखों में इक जमे-फकीरी है,
पर, पीने-पिलाने का अंदाज़ है शहाना I 

वही बेगाना बन बैठा, समझते थे जिसे अपना

वही बेगाना बन बैठा, समझते थे जिसे अपना I
कोई अए काश बतलाये, कहें अब हम किसे अपना I

रकीबों ने लगाई आग, और वह देखकर चुप हैं I
अगर उनकी ख़ुशी है ये, ख़ुशी से घर जले अपना I

हमीं पर है इनायत ये, कि हम रो भी नहीं सकते I
उठा लें आस्मां सर पर, अगर कुछ बस चले अपना I

रकीबों-मेहरबां अपने, अज़ीज़ो अकरबां अपने I
बुला लेना इन्हें भी, हाँ जनाज़ा जब उठे अपना I

जिए जाते हैं आय 'दरवेश' इक झूठे बहाने पर I
कभी शायद ये मुमकिन हो कोई अपना कहे अपना I 

शम्मा रौशन न हुई, दूर अँधेरा न हुआ

शम्मा रौशन न हुई, दूर अँधेरा न हुआ I
देखता रह गया बीमार, सवेरा न हुआ I

सोज़े पिनहा, गमे हिज़्रा, दिले नादां की कसम,
जिसको सीने में बसाया वही मेरा न हुआ I

बार बार आई, मगर लौट गई आ आ कर,
दो पलक नींद का पलकों में बसेरा नहीं हुआ I

मुन्तजिर  कबसे है इक मुज़दा के ऐ बादे सबा
पर कभी गौरे-गरीबां तेरा फेरा न हुआ I

जाने क्या बात है उस बज़्म में अक्सर 'दरवेश'
ज़िक्र औरों का हुआ पर कभी मेरा न हुआ I 

समाई नज़र में नज़र जब किसी की

समाई नज़र में नज़र जब किसी की
नज़र जाके ठहरी नज़रों से आगे I
खुली आँख देखा जहाँ और ही था
बहार और ही थी बहारों से आगे I

हमे लग्जिशे रास आई है ज़ाहिद,
मुबारक हो तुझको तेरी पारसाई I
उठाये कदम लाख तूने संभलके,
न पहुंचा मगर वादा ख़्वारों से आगे I

गुनहगार कोई चला आ रहा है,
न दम तोड़ बैठे कहीं तशनगी से I
खुदरा कोई आज मौजों से कह दे,
बढे और पहुंचे किनारों से आगे I

हर इक मौजे तूफां को समझा किनारा,
मुखालिफ हवाओं में ढूंढा सहारा I
ताज़्ज़ुब नहीं गर हमे लेके पहुंचे,
सितारों की गर्दिश सितारों से आगे I

निगाहों में 'दरवेश' गल्ता - जुबानें,
ख़ामोशी में पिनहा कई दस्ताने I
इशारों इशारों में समझ गए वो,
न हो बात कोई इशारों से आगे I

सरबसर कायनात जलती है,

सरबसर कायनात जलती है,
आह सीने से जब निकलती है I

बह निकलता है आग का दरिया,
याद जब आंसुओं में ढलती है I

भीग जाती हैं और भी पलकें,
जब कहीं उनकी बात चलती है I

अपने हाथों से बुझा गए वो चिराग,
मौत अब किसलिए मचलती है?

हम भी बदले, कुछ आप भी बदले,
पर, ये दुनिया कहाँ बदलती है !

तुम ना समझोगे हाय परवानों,
शम्मा किस आरजू में जलती है ?

ज़िंदगी लड़खड़ा गई 'दरवेश',
अब सम्हाले कहाँ सम्हालती है I 

साकिया और अभी महफिले-रिन्दाना रहे

साकिया और अभी महफिले-रिन्दाना रहे,
मैं रहूँ या ना रहूँ पर तेरा मयखाना रहे I

आफरी उन पे कि जो लुत्फ़ों करम से उनके,
रिन्द कहलाये, मगर, दुश्मने मयखाना रहे I

तुम करो जश्ने-चराग़ां तुम्हे अब शम्माँ से क्या,
अब कहीं शम्माँ जले और कहीं परवाना रहे I

मैं हूँ दीवाना, मेरा जौके - जुनूं तो देखो,
आप कहदें कि ये दीवाना है, दीवाना रहे I

आज क्यों छेड दिया फिर मेरा अफ़साना-ए-गम,
क्या ये बेहतर नहीं अफ़साना, गर, अफ़साना रहे I

वो भी अब सोचते रहते हैं कि 'दरवेश' के बाद -
बज़्म में अब कोई दीवाना रहे या न रहे I 

सीने में दर्द लेके चले गुलिस्तां से हम

सीने में दर्द लेके चले गुलिस्तां से हम,
आई बहार दूर हुए आशियाँ से हम I

होगा न इस जहाँ में कोई हम सा बदनसीब,
मंजिल के पास आके छूटे कारवां से हम I

हम से खुद अपना साया ही बेज़ार हो गया,
शिकवा करें तो क्या करें उस मेहरबान से हम I

इस गर्दिशे-दौरां की ये गर्दिश तो देखिए,
फिर आ गए वहीँ पे, चले थे जहाँ से हम I

कहना न फिर कि तालिबे-रेहमत न था कोई,
जाते हैं उठ के आज तेरे आस्तां से हम I

थी आरजू कि हम भी समझते कुछ उनकी बात,
वाकिफ मगर ना हो सके उनकी जुबां से हम I

'दरवेश' हूँ दरवेश की दौलत है फकीरी,
अब सीमो-ज़र की नेमतें लाएं कहाँ से हम I 

Wednesday, 5 November 2014

हम अपने सीने में इक आग-सी लगाये हुए,

हम अपने सीने में इक आग-सी लगाये हुए,
फिरे जहाँ में किसी राज़ को छिपाए हुए I

हमारे जौके जुनूं से है ज़िंदगी बेज़ार,
गमे हयात से हम भी हैं तंग आए हुए I

झलक रहा है लहू आंसुओं में देख अय दिल,
ये रंग लाये हैं फ़ितने तेरे जगाये हुए I

ठगी ठगी सी हर इक सू भटक रही है नज़र,
तिलिस्मे-हुस्न के पैहम फरेब खाए हुए I

बुझा अभी से न अय मर्ग बार बार आकर,
किसी की आस में हम हैं दिया जलाये हुए I

कभी तो आएंगे वो आलमे-तसव्वुर में,
हम इंतज़ार में बैठे हैं लौ लगाये हुए I

गुज़र गए वो ये कहकर करीब से 'दरवेश',
ये कौन राह में बैठा है सर झुकाये हुए I 

हद्दे वफ़ा से अपनी, अभी बेखबर हूँ मैं

हद्दे वफ़ा से अपनी, अभी बेखबर हूँ मैं I
वो आये या न आये मगर, मुन्तज़र हूँ मैं I

कहती है आहे सर्द ये उठ उठ के बार बार
लब तक मुझे न खींच, अभी बेअसर हूँ मैं I

आलमे-दहर मुझ पे गुज़रते चले गए
गोया मुसीबतों के लिए रह-गुज़र हूँ मैं I

तौबा शराबो-शर से मैं कर लूं हज़ार बार I
तौबा (डरता हूँ) ये टूट जाएगी आखिर बशर हूँ मै I

दुनिया-ए रंगीं के फरेबों से होशियार,
महवे-तलाशे-हुस्न सरापा नज़र हूँ मैं I

कैदे-हायत बारे-नफ़स  जाने-न- तवां,
परवाज़ की है आरज़ू बे-बालो-पर हूँ मैं I

कब तक किसी की राह में जलता रहूँगा और,
लौ टिमटिमाती रही है, चिराग़े-सहर हूँ मैं I

'दरवेश' चल रहे कहीं दैरो हराम से दूर,
फितवा है अहले-दीन का आशुफ्त-सर हूँ  मैं I 

हमने सपने तो सजाए थे

हमने सपने तो सजाए थे, मिला कुछ भी नहीं,
ज़िंदगी ख्वाबे-परीशां के सिवा कुछ भी नहीं I

पूछते हैं हमसे वो खामोश रहने का सबब,
यूं तो कहना था बहुत, हमने कहा कुछ भी नहीं I

आज क्यूँ हम हो गए खारे - नज़र उनके लिए,
खुद से शिकवा है हमें - उनसे गिला कुछ भी नहीं I

सोचता हूँ मैं कि मेरे पास बाकी क्या रहा,
उनको शिकवा है, दिया नज़रे-वफ़ा कुछ भी नहीं I

यूं तो पी ली थी ज़रा सी, चीख उठा सारा जहाँ,
क्या इसे शर्मो-हाय, खौफे-खुद कुछ भी नहीं !

हो गया वो सब का, अय 'दरवेश' जो न होना था,
और सितम ये है वो कहते हैं कुछ भी नहीं I 

है मुबारक वो घड़ी

है मुबारक वो घड़ी और मुबारक वो शब,
आके जब याद तेरी रूह को तड़पती है I

टकटकी बांध के जम जाती है इक सिम्त नज़र,
एक से एक पलक मिलने को शर्माती है I

यादे माज़ी का हर इक नक्श उभर आता है,
बेबसी हद्दे-वफ़ा बन के गज़ब ढाती है I

खाए जाता है कोई, सीने में दम घुटता है,
लौट कर साँस न आने की कसम कहती है I

दिल तड़पता है, कलेजे से धुआं उठता है,
अश्क आँखों से रवां, नींद किसे आती है?

टीस उठती है, कोई तीर लगा हो जैसे,
अरज़ो-जौहर की गिरह धीरे से खुल जाती है I 

हो रहे हैं गैर वो जो गैर हो सकते नहीं

हो रहे हैं गैर वो जो गैर हो सकते नहीं

अब ये मुमकिन ही नहीं साहिल कभी होगा नसीब,
कश्तिये - उम्मीद हम फिर भी डुबो सकते नहीं I

नींद है बेताब आँखों में समाने के लिए,
नींद को हम कैसे समझाएं कि सो सकते नहीं I

आरजू थी पेश करते, हार अश्कों का उन्हें,
है ये वो मोती जो धागों में पिरो सकते नहीं I

दिल तड़पता है कि ऐ 'दरवेश' रोयें जार जार,

है मगर कुछ ऐसी मजबूरी कि रो सकते नहीं I

जो मेरा हाल है मिन्नत करो बयां क्यूँ हो

जो मेरा हाल है मिन्नत करो बयां क्यूँ हो,
करे जो शिकवा-ए-गम, वो मेरी जुबां क्यों हो I

अता हुआ है अगर सोज़, चुपके चुपके जल,
कहीं पे शोला उठे और कहीं धुआँ क्यों हो I

उठाये फिरते हैं कांधे पे लाश खुद अपनी,
हमारा बोझ किसी और पे गिरा क्यूँ हो I

तेरे नसीब में खुशियोँ नहीं जब अए 'दरवेश',

कोई निगाहे करम तुझ पर मेहरबां क्यों हो I

Tuesday, 4 November 2014

ऋतु बदली कलियाँ मुस्काईं

ऋतु बदली कलियाँ मुस्काईं काँप रहा है मेरा मन I
बीत ना जाए जल्दी - जल्दी ये प्यारा भोला बचपन I I

नन्हीं - नन्हीं चिड़ियों से मीठी - मीठी बातें करना I
रंग बिरंगी भोली - भाली तितली के पीछे फिरना  I I

कंकड़ - पत्थर चूड़ी के टुकड़ों को जेबों में भरना I
यही हमारा सोना - चांदी, यही हमारा प्यारा धन  I I

ऋतु बदली कलियाँ मुस्काईं काँप रहा है मेरा मन I
बीत ना जाए जल्दी - जल्दी ये प्यारा भोला बचपन I I 

हे सतगुरु, हे पिता दयारे

हे सतगुरु, हे पिता दयारे,
मैं हूँ बाल तुम्हारा प्यारे I

छोटा बाल उमरिया छोटी,
तुम्हें न जानूँ बुद्धि मोटी I
दया करी तुमने अपनाया,
दीन जान मोहे चरण लगाया I

आब यह दान देओ मोहे दाता,
हरदम राखो अपने साथा I
ऐसी कोई सेवा बन आवे,
सुखी हों सब तुम्हरे मन भावे I

हे सतगुरु, ......

शेर -




दफ अतन आप निगाहें जो उठा देते हैं,
देखनेवालों की तस्वीर बना देते हैं I
 -----------------------------------------------
कभी उल्फत की बाज़ी जीत कर भी हर होती है.
न ऐ शामस्त झूम तू इतना निशाते कामरानी में I
-------------------------------------------------
खुद जाने मैं क्या कहता रहा दिलकी खादी में,
की वो तस्वीर बनकर खो गए मेरी कहानी में I
-------------------------------------------------
सहारे मौजों का पाते हैं उभर जाते हैं.
पिरोये जाते हैं धागे में संवर जाते हैं I
मगर बताये इनको क्या कहूँ 'दरवेश'
गिरे जब आँख से दमन पे बिखर जाते हैं I
------------------------------------------------
तुम आये नींद से आँखें हुई मेरी बोझल
ज़रा रुको की मैं सो जाऊँ - तब चले जाना I
गमे फ़िराक मैं पाई थी जिंदगी मैंने
सकून वस्ल में खो जाऊं तब चले जाना I
-----------------------------------------------
लौ पे उठा है दिल का मेरा चिराग
गोया किसीकी याद फिर आने लगी.
----------------------------------------------
हुस्न गुलशन निखार जाती है
अश्के शबनम संवर जाती है I
हाय 'दरवेश' चांदनी रातें
ज़ख़्म दिल के उभार जाती है I
------------------------------------------------
इश्क हर तौर से बदनाम हुआ, पर न हुआ
इश्क वालों का बहुत नाम हुआ, पर न हुआ I
भर के पैमाने चले, जामे शिकस्त की कसम
साक़िया लुत्फ़ो करम आम हुआ, पर न हुआ I
--------------------------------------------------
गम से न हो गर आशना, ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं I
मर के भी गर जी न सके, आदमी आदमी नहीं I
-------------------------------------------------
दफ अतन आप निगाहें जो उठा देते हैं
देखनेवालों की तस्वीर बना देते हैं
------------------------------------------------
इश्क हर तौर से बदनाम हुआ, पर न हुआ I
इश्क़वालों का बहुत नाम हुआ, पर न हुआ I
भर के पैमाने चले जामे शिकस्त की कसम I
साक़िया लुत्फ़ो करम आम हुआ, पर न हुआ I
---------------------------------------------------
बेड़ियां मौत की काटी इन बुल हवसों की I
एड़ियां मौत की काटी तेरे दीवानों ने I
--------------------------------------------------
बुझ गई शमा उनके अंचल से,
लाख तूफान जिसे बुझा न सके I
उनकी तस्वीर खींच कर दिल में,
खो गए आलमे तसवुर में I
उनकी तस्वीर हो गई घायल,
इसलिए वो करीब आ न सके I
--------------------------------------------------
बैठे थे तेरे साये में, सब उठ के चल दिए I
'दरवेश' खस्ता जां, ज़रा समझो तो इशारा I
--------------------------------------------------
कदम डगमगाते रहे हर कदम पर,
मोहब्बत की राहों में चलना न आया I
सहारों के मारे हुए थे हम ऐसे,
गिरे हम तो गिरकर सम्भलना न आया I
-------------------------------------------------
छोड़ कर मंझधार में ,मल्लाह कह कर चल दिए I
डूबजाना है यहां, साहिल पे आना है मना I
---------------------------------------------------

ज़िहाले मिस्की ........
किताबे हिज़्राँ .........
कोई काफिर ही शब को सोता है, रात भर दिल में दर्द होता है I
ठंडी ठंडी हवा जो चलती है, आग सी पहलुओं में जलती है I
एक मुद्दत हुई नहीं देखा, हाय तेरा वो चाँद सा मुखड़ा I
दिल तड़पता है आँख रोती है, इस तरह सुबह शाम होती है I
खाये जाता है कोई सीने में, आग लग जाये ऐसे जीने में I
तेरा है साँस आने जाने से, अब तो आज किसी बहाने से I
ज़िहाले मिस्की .......
किताबे हिज़्राँ ......
कुछ मुझे तेरे दर से मिल जाए, किस मुनाफिक को इसकी हसरत है I
क्या करूंगा मैं नेमते लेकर, मेरी हर साँस तेरी नेमत है I
तुझ पे रोशन है ऐ मेरे मौला, कि मेरे दिल में सोहज़े वहदत है I
तेरे इनाम की नहीं ख्वाइश, बल्कि मुझको तेरी जरूरत है I
ज़िहाले मिस्की ....
किताबे हिज़्रा ....
ऐ खुशनुमा सितारों, शम्मा जलाने वालों,
गरदु पे सादगी से, ए जगमगाने वालों I
सदके मैं इस जिया के, इक बात मेरी मानो,
जब गुलशन मैं झोंके, चलने लगे हवा के,
कुछ नूर कुछ सियाही, जिस वक्त मिल रहे हों I
फिर दौस की हवा से, फिर फूल खिल रहे हो I
जैसे ही आज तुममें, हुस्ने अजल समाए I
मशरफ में सुबह सादिक, जिस वक्त जगमगाए I
कहना कि एक बन्दा, मुद्दत से रो रहा है I
रो रो के बेकसी में, जान अपनी खो रहा है I
रोने का चश्मे तरसे, गोया मुहाएदा है I
माबूद ये हमारा, ऐनी मुशाहेदा है I
हम कांपते हैं शब भर, कुछ यूं कराहता है I
और सिर्फ तुमसे इतना, इक दोस्त चाहता है I
जिहाले मिस्की .....
किताबें हिज़्रा .......




ज़िहाले मिस्की मकुन तग़ाफ़ुल, दुआरे नैना बनाये बतियाँ I
किताबे हिज़्रा न दरम ऐन्जा, न लेहू काहे लगाये छतियां I

मांस गया पिंजर रहा, ताकन लागे काग I
साहब अजहुँ न आइया कोई मंद हमारो भाग I

कागा सब तन खाइयो, खइयो चुन चुन मांस I
दो नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस I

कागा नैन निकल दूँ, पिया पास ले जाये I
पहले दरस दिखाई के पीछे लीज्यो खाए I

नैन कमंडल कर लिये, बैरागी दो नैन I
मांगे दरस मधुकरी, छके रहे दिन रैन I

सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे I
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे I

साईं तुम्हरे दरस बिन, अंगना नहीं सुहाए I
घर के सब बैरी लगे, घर खावन को आए I

साईं तुम्हरे दरस बिन, अगिन जले सब देह I
नैनन जल बरसे नहीं, जलकर होवे ------- I

हिरदा थाली एक थी, जामे भरिया नीर
सोभी अब छलनी भया, लग लग ------- I

बिरहा अगिन भडकन लगी, अंग अंग अकुलाए I
हिरदा तो खाली पड़ा क्यूंकर लेउँ बुझाए I

जीवन मेरा हाथ तुम और न कोई उपाय I
जो चाहो मोहि राखना प्रेम बंद बरसाये I



बिदा हो रही बहन आज .....

एक मित्र की बहन के विदाई समारोह के लिए विशष रूप से इस कविता को लिखा था -

बिदा हो रही बहन आज, भाई के भर आये नैना I

बात बात पर झगड़ा करना, करके कोई बहाना I
ना मानी जो बात ज़रा सी, रूठ इसी पर जाना I
जितना कोई मनाए जाकर, उतना और झल्लाना I
माँ देखो भैया तंग करता, जोर से ये चिल्लाना I
कौन सकेगा भूल ये तेरे, झूठे आंसू बहना I
भाई के भर आये नैना .....

माँ को क्रोध कभी जो आया, नखरा हमने भी दिखलाया I
रूठ के बाहर हम जा बैठे, भीतर भूखे ऊपर ऐंठे I
माँ को तरस जरा ना आया, खाना हमने भी न खाया I
छिपा के दो रोटी झोली में, कहती ये मीठी बोली में,
भैया चुपके से अब खा लो, माँ से कुछ ना कहना I
भाई के भर आये नैना .....

अब तक जिस आँगन में खेली, आज हुआ वो सूना I
कोयल, गैया भी उदास है, लल्ली को दुःख दूना I
बाबू बहु श्याम सुन्दर, सूरज स्वरुप सीता भी I
सुधा सुरेन्द्र सुधीर सुरेश, सब पर छाई उदासी I
चिंता हम सबकी मत करना, सदा सुखी तुम रहना I
भाई के भर आये नैना .....

सावन ऋतू आई मतवाली, झूला पड़ा नीम की डाली I
झूल झूल के गाती सखियाँ, भैया अब बँधवालो राखी I
पर भैया की आई चिट्ठी, अब की बार मिली न छुट्टी I
ठंडी आह भरी धीरे से, मन ही मन में सहना I
भाई के भर आये नैना .....

आज बिछुड़ने से पहले, दो शब्द हमारे सुनलो I
भाई का उपहार जान कर, हिये अंतर में धार लो I
सास ससुर देवर जेठानी, सबकी सेवा करना I
जब तक रहे प्रान तन भीतर, पिया संग ना तजना I
नीची आँख मृदु अस बोलें, यही तुम्हारा गहना I
भाई के भर आये नैना .....

सखी री डोली पे हो जा सवार ....

सखी री डोली पे हो जा सवार, जाना ये अंतिम बार I

मैके की याद अब दिल से मिटा दे, अपने पराये सब को भुला दे I
बंधन झूठा सब से चुदा दे, जाना रे अंतिम बार I

भाई बंधु क्या संगी साथी, कोई नहीं है तेरा साथी I
आई अकेली अकेली जाती, झूठा है सब संसार I

रोने से तेरा क्या होगा, जो कुछ होगा भला ही होगा I
हर इक को चलना ही होगा, चार के कांधे सवार I

चार जो तेरे साथ जायेंगे, नगर निकाल लौट आएंगे I
अगिन पवन को सौंप आएंगे, कोई नहीं गमख्वार I

वस्त्र यहां का सौंप अगिन को, निर्मल हो चल पिया मिलान को I
जाये पिया मिल फोड़ गगन को, करना पिया से प्यार I

सखी री डोली पे हो जा सवार, जाना ये अंतिम बार I 

उन पूछी है कुसल हमारी ....

उन पूछी है कुसल हमारी, तुम ही कहो अब सखी सयानी I
मैं का लिखूं बेचारी
उन पूछी है ....

मैं का जानूं दुःख बिरहा का, मैं हूँ भोली नारी  I
खावत पीवत, खेलत कूदत, सोवत टांग पसारी I
उन पूछी है ....

ऋतू बसंत कलियाँ मुस्कानी, छाई अजब बहारी I
झूरी झूरी अम्बवा की डारि, कूके कोयल कारी I
उन पूछी है ....

फागुन रुत आई रंग रंगीली, बौर भाई सखी सारी I
अपने (सबही) पिया संग खुल खुल खेलें, मैं देखूं मन मारी ....
उन पूछी है ....

तड़पत तड़पत कहूँ सावन आया, छाई घटा मतवारी I
बैरी पपीहा धीर न धरे, पीयू पीयू करात पुकारी I
उन पूछी है ....

भादों उमड़ घुमड़ कर बरसे, चमके बिजुरी कारी I
धीरज बांध टूट गए सारे, नीर बहे अतिभारी I
उन पूछी है ....

आप न आये बुलाये न भेजा, जो बन जात पुकारी I
स्वामीदास पिया बड़े हठीले, अरे किन संग लागी यारी I
उन पूछी है ....

Monday, 3 November 2014

मैं सोने की सीढ़ी बनाये दूंगो, मोरे सजनवा आएं तो I

मैं सोने की सीढ़ी बनाये दूंगो, मोरे सजनवा आएं तो I 
अंसुवन जल से धोये धोये, मैं नैनं पालक बिछाये दूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

कोई कहते मोहे प्रीत ना उनसे, नित ही सब अवगुण मोरे गुनते I 
क्या कुछ धरा हिये में मेरे, छाती चीर दिखाए दूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

कहीं वो इस कारन नहीं आएं, सब ये बात जान नहीं जायें I 
हिये अंतर में बिठलाईके, मैं नैनन ओट छिपाए लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

ये सच है मैं कहा ना मानी, कबहू मौज उन ना पहचानी I 
कर कर बिनती गिर गिर चरनन, मैं उनको आप मनाये लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

ये भी सच मै करी न सेवा, कास उन भाऊँ, पाऊँ कास मेवा I 
तन मन धन सब अरपन करके, मैं उन को आप फिझाये लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

हठ मैं करून कबहुँ ना उनसे, पाये पिया मैंने बड़े जतन से I 
जो आज्ञा वो जैसी कहवें, मैं चरनन सीस नवाए लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

मैं तो सदा ही संग संग बहती, इत उत भरमत फिरती डोलती I 
एक बार वो चरन पधारें, मैं चरनन सूरत लगाये लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

Sunday, 2 November 2014

पन्नी गली से हुआ तुलु, सच्चे खुद का आफ़ताब

पन्नी गली से हुआ तुलु, सच्चे खुद का आफ़ताब I
जिसकी जिया और नूर से, टूट गया जहाँ का ख्वाब I

पीर बोरियां नशी, आफरी सद आफरी I
पीरी फकीरी के क्लब में, शाने अमीरी अहदे शबाब I

ज़िक्र क्या है फ़िक्र क्या, तूने हमें सीखा दिया I
हक़ का तबल बजा दिया, रब का सुना दिया रबाब I

तेरा जलाल नूरजां, तेरा जमाल बद्रसां I
साथ साथ है अयां, आफ़ताब माहताब I

ढूंढा तुझे बहुत मगर, पा न सका कोई बशर I
हम पर हुई तेरी मेहर, आके मिला तू बे-हिजाब I

देखा जो बेडा डूबता, बन्दों पे प्यार हो गया I
तेरा करम है बे-पनहा, रहमत तेरी है बे-हिसाब I

शेरो-सुखन की खूबियाँ, तेरी जुबां से हैं अयां I
अमृत की धार है रवां, तर्जे बयां है लाजवाब I

जिसका खुमार एक बार, चढ़के न फिर उत्तर सके I
एक निगाहे लुत्फ़ से, तूने पिलाई वो शराब I

काल की हमसे दुश्मनी, लिखता रहा गलत सही I
कलम अफ्रु की फेर दी, फाड़ के फेंक दी किताब I

साहब के रूप में तो वाह, तूने कमल कर दिया I
क़दमों में शाह झुक गया, 'सर' से किया तुझे ख़िताब I

(ये रचना दरवेश साहब ने उनके अराध्या - राधास्वामी मत के गुरु - साहब जी महाराज (जिनका जन्म आगरा की पन्नी गली में हुआ था) के सन्दर्भ में - कुछ पुरानी प्रचलित पंक्तियों को आगे बढ़ाते हुए लिखी थी )

हम जंगल के रहनेवाले

(यह कविता राजाबरारी के आदिवासी बच्चों के लिए लिखी थी - जिसे उन बच्चों ने अपने गुरु महाराज के सामने पेश किया था I )

हम जंगल के रहनेवाले, उनकी बस्ती में आये हैं I
कुछ पास नहीं था, क्या लाते, बस प्यार लुटाने आये हैं I

फल फूल उन्हें जो पेश करें, जंगल में ऐसे फूल नहीं I
मेवा मिष्ठान बने जिनसे, वो कन्द नहीं वो मूल नहीं I
वह तो फिर भी चावल लाया,हम लए हैं 'कोदों, कुटकी' I
झोली में क्या है मत पूछो, मक्का, सांवा, तेंदु, इमली I
हम चट्टानों से चुन चुन कर, महुआ की कलियाँ लए हैं I

हम जंगल के ........

है दूर दूर तक सन्नाटा, चिल्लाओ कोई नहीं सुनता I
आवाज़ कहाँ खो जाती है, खुद को भी पता नहीं चलता I
सहमा सहमा सा आलम है, पत्ता भी एक नहीं हिलता I
यूँ तो मिलने आ जाये कोई, पर अपना कोई नहीं मिलता I
अपने मन का सारा दुखड़ा, हम तुम्हें सुनाने आये हैं I

हम जंगल के .....

हमें सोना चाँदी ...... नहीं चाहिए I
हमें हीरा मोती ...... नहीं चाहिए I
हमें घोडा हाथी ...... नहीं चाहिए I
हमें पैसा कौड़ी ...... नहीं चाहिए I
हमें माखन रोटी ...... नहीं चाहिए I
हमें हलवा पूड़ी ...... नहीं चाहिए I
हमें लाडू बर्फी ...... नहीं चाहिए I
हमें दूध जलेबी ...... नहीं चाहिए I
हमें पटका धोती ...... नहीं चाहिए I
हमें जूता टोपी ...... नहीं चाहिए I
तन ढकने को है एक बहुत, हमें और लंगोटी नहीं चाहिए I
बस धुल तुम्हारे चरनों की माथे पे चढाने आए हैं I

हम जंगल के .......

जंगल में भी आकर देखो, कैसी रंगीन फ़िज़ाएं हैं I
तन मन का सारा दुःख हर लें, वह महकी मस्त हवाएँ हैं I
करती अठखेली परबत से, काली घनघोर घटाएँ हैं I
बल खा के पेड़ों से लिपटी, ये चंचल चपल लताएँ हैं I
ये बन, परबत, जल के धरे, सब मिलकर तुम्हें बुलाते हैं I
कुछ बोल नहीं सकते फिर भी, रह-रह कर टेर लगाते हैं I
ओ! जान प्राण सब के प्रीतम, तुम प्रीत की रीत निभा जाना I
सौगंध तुम्हें इस धरती की, पहली फुर्सत में आ जाना I
तुम्हे चाहनेवाले और भी हैं, ये याद दिलाने आये हैं I

हम जंगल के ........

Saturday, 1 November 2014

जश्ने सदसाला (100 years)

तेरा है ये जश्ने सदसाला (100 years) जो हरसू शादमानी (merry making) है I
सदा गुलज़ार है गुलशन, यह कैसी बागबानी है ?

तेरा गुलशन यह सुल्तानी (Royal)
गुलों की खदा परेशानी (हँसते हुए, खिले हुए फूल)
दिलों को कर रही रोशन,
तेरी यादों की नूरानी (Brightness) I

तेरी अज़मत के जलवे हैं, अताए (Blessing) आसमानी हैं I
कि हरशू शादमानी है कि हरसू शादमानी है I
तेरी हशमत (greatness) के चर्चे हैं
तेरी रेहमत के पर्चे हैं I
हर इक दिल में, मेरे साहब,
तेरी उल्फत (प्यार) के नक़्शे हैं I
 नज़र में है रूखे नूरां (तेजस्वी स्वरुप), लबों पर नग्मूरवानी है I

कि हरसू शादमानी है .....

जिधर देखो उधर खुशियां, जिधर देखो है रंगरलियां I
तेरे उस जल्व-ए-रौशन से, रौशन है तेरी गलियाँ I
नज़रें चार-सू दिलकश, चमन में गुल-फिशानी (फूलों कि वर्षा) है I
सदा गुलज़ार है गुलशन, यह कैसी बाग़बानी है I