Friday, 7 November 2014

बाली पे मौत आकर बोली ये मुसाफिर

बाली पे मौत आकर बोली ये मुसाफिर !
रस्ते में थक गया है टूक नींद सो रहा है I

धीमी है दिल की धड़कन और सांस रुक चली है,
ये साज़े-ज़िंदगी अब खामोश हो रहा है I

है वो आज कुछ परेशां, है खलिश ये दिल में कैसी,
कोई जा उन्हें बता दे, 'दरवेश' रो रहा है I

गरदाब मेरी मंज़िल हर मौज है किनारा,
तूफ़ान बन के जब वो कश्ती डुबो रहा है I 

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