Monday, 10 November 2014

अब ना साकी से सरोकार न पैमाने से

अब ना साकी से सरोकार न पैमाने से,
आज ये कैसी सदा आई है मयखाने से I

कोई रिन्दाने ख़राबात से इतना पूछे,
बज़्म से उठ के वो क्यों चल दिए बेगाने से I

प्यास होठों पे लिए और नमी आँखों में,
कोई इस हाल में रुखसत न हो मयखाने से I

ज़िंदगी रूठ गई आप गए हैं जब से,
मौत भी रूठ न जाये कहीं दीवाने से I

आप रहने दें अभी होशों ख़िरद की बातें,
क्या ये दीवाने समझ जायेंगे समझाने से I

अब भी रौशन हैं ख्यालों में तसव्वुर उनका,
अब भी निस्बत है कोई शम्मा की परवाने से I

उनको ये जश्न चिरागां हो मुबारक 'दरवेश',
जो कभी शम्मा से खेले कभी परवाने से I 

1 comment:

  1. This undoubtedly refers to the passing away of Sahabji Maharaj Sir Anand Swaroop....I was at Dayalbagh 1932-1944.....He was the last Poet-Guru in the ancient tradition of Sant Kabir

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