Monday, 10 November 2014

इक अजब कैफ दिल पे तारी है

इक अजब कैफ दिल पे तारी है,
          कूच की आज अपनी बारी है I
बुलबुले झूम झूम गाती है,
           छा रही हर तरफ बहारी है I
कोई देखे तो उन निगाहों में,
           एक पैगामे वादा खारी है I
जाऊँगा उठ के चार कांधों पर,
          वाह किस शान की सवारी है !
ज़िंदगी दे के मुझसे यूँ बोले,
           ये अमानत फ़क़त हमारी है I
राजे उल्फत किसी पे क्यों खुलता,
           दिल तुम्हारा, ज़ुबां तुम्हारी है I
आम है हुस्नो इश्क के चर्चे,
          ये, मगर दास्ताँ हमारी है I
उनको है नाज़ अपनी रहमत पर,
           और मुझे नाज़े-गुनहगारी है I
हुस्न क्या है कशिश निगाहों की,
           इश्क अंदाज़े-जां-निसारी है I
ज़िन्दगी क्या है दौरे मयनोशी,
          मौत हल्की सी इक खुमारी है I
जान आँखों में रुक गई आकर,
          क्या खबर, किसकी इंतज़ारी है I
भूलते क्यों हो आज वो वादा,
          जिसपे काटी ये उम्र सारी है I
नींद आँखों में बन के आ जाओ,
          सारी शब जागते गुज़ारी है I
मान जाओ कि बात रह जाए,
          बात मेरी नहीं, तुम्हारी है I
मैं ही कुछ मुज़तरिब नहीं हूँ यहाँ,
           आज उन को भी बेकरारी है I
दर पे नज़रें लगाए रख 'दरवेश',
           कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है I

No comments:

Post a Comment