जो
मेरा हाल है मिन्नत करो बयां क्यूँ हो,
करे
जो शिकवा-ए-गम, वो मेरी जुबां क्यों हो I
अता
हुआ है अगर सोज़, चुपके चुपके जल,
कहीं
पे शोला उठे और कहीं धुआँ क्यों हो I
उठाये
फिरते हैं कांधे पे लाश खुद अपनी,
हमारा
बोझ किसी और पे गिरा क्यूँ हो I
तेरे
नसीब में खुशियोँ नहीं जब अए 'दरवेश',
कोई
निगाहे करम तुझ पर मेहरबां क्यों हो I
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