हो
रहे हैं गैर वो जो गैर हो सकते नहीं
अब
ये मुमकिन ही नहीं साहिल कभी होगा नसीब,
कश्तिये
- उम्मीद हम फिर भी डुबो सकते नहीं I
नींद
है बेताब आँखों में समाने के लिए,
नींद
को हम कैसे समझाएं कि सो सकते नहीं I
आरजू
थी पेश करते, हार अश्कों का उन्हें,
है
ये वो मोती जो धागों में पिरो सकते नहीं I
दिल
तड़पता है कि ऐ 'दरवेश' रोयें जार जार,
है
मगर कुछ ऐसी मजबूरी कि रो सकते नहीं I
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