Monday, 10 November 2014

आँखों में उनके नूर था

आँखों में उनके नूर था चेहरा था पुर-जलाल,
इतना तो मुझको याद है, इस के सिवा नहीं I

तौबा मेरे गुनाह किया मैंने क्या नहीं,
तेरा करम बेपनाह दिया तूने क्या नहीं I

मुझ से हज़ार होंगे तेरी बज़्म में, मगर,
जिसका न तुझ सिवा हो वो मेरे सिवा नहीं I

लाज़िम है क्या कि मैं ही कहूँ अपने दिल की बात,
ज़ाहिर है मुझ पे खूब, वो तुझ से छिपा नहीं I

कहने को था कहा भी मगर कैसे अब कहूँ,
कि कैसे तुमने हाँ कहा, कैसे कहा नहीं I

क्या हाल पूछते हो दमे वस्ल-ए-हबीब,
सब्रो करार क़ल्ब को मेरे रहा नहीं I

'दरवेश' बात हो न सकी दिल में रह गई,
सुनते तो वो ज़रूर पर कहते बना नहीं I 

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