Monday, 3 November 2014

मैं सोने की सीढ़ी बनाये दूंगो, मोरे सजनवा आएं तो I

मैं सोने की सीढ़ी बनाये दूंगो, मोरे सजनवा आएं तो I 
अंसुवन जल से धोये धोये, मैं नैनं पालक बिछाये दूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

कोई कहते मोहे प्रीत ना उनसे, नित ही सब अवगुण मोरे गुनते I 
क्या कुछ धरा हिये में मेरे, छाती चीर दिखाए दूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

कहीं वो इस कारन नहीं आएं, सब ये बात जान नहीं जायें I 
हिये अंतर में बिठलाईके, मैं नैनन ओट छिपाए लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

ये सच है मैं कहा ना मानी, कबहू मौज उन ना पहचानी I 
कर कर बिनती गिर गिर चरनन, मैं उनको आप मनाये लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

ये भी सच मै करी न सेवा, कास उन भाऊँ, पाऊँ कास मेवा I 
तन मन धन सब अरपन करके, मैं उन को आप फिझाये लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

हठ मैं करून कबहुँ ना उनसे, पाये पिया मैंने बड़े जतन से I 
जो आज्ञा वो जैसी कहवें, मैं चरनन सीस नवाए लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

मैं तो सदा ही संग संग बहती, इत उत भरमत फिरती डोलती I 
एक बार वो चरन पधारें, मैं चरनन सूरत लगाये लूंगो ....
मोरे सजनवा आएं तो .....

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