Monday, 10 November 2014

अय! तौबा करो साहब

अय! तौबा करो साहब,
          अय! जाने भी दो साहब I
क्यूँ मुझको बनाते हो?
         क्यूँ फितना जगाते हो ?

वो मुझसे खफा है कुछ,
         माइल पै जफ़ा है कुछ,
अग़यार से मिलते है,
         और प्यार से मिलते हैं I
आखिर ये वजह क्या है ?
         यह कहर हुआ क्या है?
पहले तो न थे ऐसे,
         ये तौर हुए कैसे I
वो और कहें ऐसा,
         वो और करें ऐसा I
बहलाये गए होंगे,
         बहकाए गए होंगे I
अय! तौबा करो साहब I
         अय! जाने भी दो साहब I

क्यों कर ये मान लूँ मैं,
         और दिल में ठान लूँ मैं ?
वो आज भूल बैठे,
          वो ज़िंदगी के लम्हे I
पुर कैफ था ज़माना,
          मौज़ों में इक तराना I
आलम शबाब का था,
          जिसका जवाब न था I
मौजों में थी रवानी,
          उठती हुई जवानी I
सिक्के जमा रही थी,
          फ़ितने जग रही थी I
वो चाल बहकी बहकी,
          वो ज़ुल्फ़ महकी महकी I
जिस जां नज़र जमा दे,
          इक आग सी लगा दे I
माथे पे सुर्ख बिंदी,
           हाथों में लाल मेहंदी I
वो शोला जगाती थी,
           वो आग लगाती थी I
गुफ़्तार में तरन्नुम,
          हल्का सा इक तब्बसुम I
तूफान इक उठा दे,
          सौ बिजलियाँ गिरा दे I
आँखों में सुर्ख डोरे,
          अल्लाह रे बचो रे !
कुछ लाल कुछ गुलाबी,
          काफिर अदा शराबी !
डूबी हुई निगाहें,
           ले डूबे जिसको चाहें I
बिगड़े नसीब संवरें,
          हाय नशीली नज़रें  I
जिस सिम्त घूम जाए,
           आबिद भी झूम जाए I
ईमान लड़खड़ाये,
           औसान डगमगाए I
जायज़ हो मय-फरोशी,
           लाज़िम हो वादा-नोशी I
रुक जाएँ चाँद तारे,
           थम जायें तेज धारे I
झूमे नशे में आलम,
           मिट जायें फ़िक्र और गम I
रिन्द उठ के ले बालाएं,
          हाथों में जाम उठायें I
महशर-सा इक बपा हो,
           और शोर ये मचा हो I
ला और पिला साकी,
           है सांस अभी बाकी I
जाहिद भी जाम लेके,
          अल्लाह का नाम लेके I
दामन भिगो के मय में,
          कहता फिरे नशे में I
हाँ! बंदगी यही है,
          हाँ! ज़िंदगी यही है I
अय तौबादार पी लो,
          अय दीन-दार पी लो I
मरने से पहले जी लो!

मुत्तलिक न थे वो कमसिन,
          उन्हीं दिनों में इक दिन I
क्या जाने काम क्या था,
          पर, वक्त शाम का था I
खिड़की से सर झुकाकर,
          सब की नज़र बचाकर I
छिप कर किया इशारा,
          आहिस्ता से पुकारा I
मैं रुक गया ठिठक कर,
          वो रह गए झिझक कर I
हैरानगी थी मुझ पर,
          दीवानगी थी उन पर I
यहां खलबली मची कुछ,
          वहां बेकली बढ़ी कुछ I
गो जानते नहीं थे,
          पहचानते नहीं थे I
मेरी नज़र थी उन पर,
         उनकी निगाह मुझ पर I
कुछ ऐसे खो गए थे,
          तस्वीर हो गए थे !

अय ! तौबा करो साहब,
          अय ! जाने भी दो साहब I 

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