Friday, 7 November 2014

बे-बालों-पर हूँ आज, फ़ुगां में असर नहीं

बे-बालों-पर हूँ आज, फ़ुगां में असर नहीं,
मज़बूर उन से दूर कोई नामावर नहीं I

इक चश्मे-सिंहा-मस्त का मारा हुआ हूँ मैं,
जुज़-चश्मे-सिंहा-मस्त कोई चारागर नहीं I

था बरक़रार शोल-ए हस्ती जो अब तलक,
बुझने लगा है क्या करों खून जिगर नहीं I

हर बार इंतज़ार में जो हो गई सहर,
था जिसका इंतज़ार वो आई सहर नहीं I

कहते हो तुम तो उठ के चला जाऊंगा मगर,
क्यों कर तुम्हे बताऊँ, मेरा और दर नहीं I

मचली हुई है वर्क, गरजता है आस्मां,
क्या जाने तुम कहाँ हो, कोई रहगर नहीं I

फैज़े-दुआ है ये कि दुआ हो गई क़ुबूल,
कहता है कौन कि दुआ में असर नहीं I

कहता है दिल कि आज इधर से गए हैं वो,
ये उन के नक़्शे-पा हैं, ये शम्सो-कमर नहीं I

रहमत से अपनी आए, मगर कब चले गए,
जाने की मुझको, आने की उनको खबर नहीं I

इतने करीब आ के पुकारा कि चौंक उठा,
देखा इधर उधर वो कहीं थे, मगर नहीं I

आई निदा कि हो न परेशान सब्र कर,
है देर अभी दीद के काबिल नज़र नहीं I

'दरवेश' मार नफ़्स को राज़ी रज़ा में रह,
शाकिर हो सोज़े-हिज़्र में, हो वस्ल गर नहीं I 

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