Saturday, 12 August 2023



दरवेश जब किया, तो किया इक गुनाह और
क्या जाने किस गुनाह पर रहमत मचल गई .

तौबा में गुनाह किया, मैने किया नहीं
तेरे करम बेपनाह, दिया तूने क्या नहीं ?

मुझ से हजार होंगे तेरी बज़्म में मगर
जिससे न तुझ सिवा हो, वो मेरे सिवा नहीं.

लाज़िम है क्या कि मैं ही कहूं अपने दिल की बात
जाहिर है मुझ पे खूब, वो तुझ से छिपा नहीं.

कहने को था, कहा भी, मगर कैसे अब कहूं ?
कि कैसे तुमने हां कहा, कैसे कहा नहीं.

क्या हाल पूछते हो, दमे वस्ल ए हबीब
सब्रो करार कल्ब को, मेरे रहा नहीं.

आंखो में उनके नूर था, चेहरा था पुर जलाल
इतना तो मुझको याद है, इसके सिवा नहीं.

दरवेश बात हो न सकी, दिल में रह गई
सुनते तो वो जरूर पर कहते बना नहीं.